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संभवत: इस तरह की हत्या करते हुए अपने को बचाएगा | बचा न सकेगा, तो संभवत: एक बार तो कंपकंपाएगा ही | किंतु, इस हत्या काण्ड में तो ऐसा कुछ भी नहीं हुआ | अट्टहास होता रहा और निर्दोष रक्त बहता रहा ।
मैं नहीं समझता, ये हत्यारे अपने कलुषित मन में इस हत्याकाण्ड को करते हुए अपने को क्या समझते रहे होंगे ? संभवत: अपने को धर्मवीर, अपने अभीष्ट स्तान विशेष के वीर समझ रहे होंगे ? मैंने जान-बूझकर उनके अभिलषित स्तान विशेष के पूर्व लगते विशेषण को अंकित नहीं किया । ऐसे विशेषणों के नामोच्चारण से भी पाप लगता है “ कथा हि खलु पापनाम् अलमश्रेयसे ।"
प्रस्तुत में मैं अपने हृदय से और सभी जनों के हृदय से और खासकर उन्हीं हत्यारों के हृदय से पूछना चाहता हूँ, कि क्या यह वीरता है ? क्या यह शतांश में से एक अंश अथवा अर्धांश जैसी भी कोई वीरता है ? यह कैसी वीरता-जो योजनाबद्ध घात लगाकर निहत्थे-निर्दोष लोगों को एकाएक अचानक भुन दिया और चोरों की तरह अँधेरे का लाभ उठा कर इधर-उधर सिर छुपाते हुए भाग निकले । यदि कोई महान उद्देश्य है, और उसके लिए प्राणों को हथेली पर रख कर कुछ करने जैसा है, तो सैनिक तो क्या, सुरक्षा दल के अर्धसैनिकों के समक्ष ही चुनौती देकर वीरता पूर्वक एक योद्धा के रूप में उपस्थित हों, तब पता चलेगा कि भारतीय संस्कृति के वीरों का वीरत्व कैसा होता है ? स्पष्ट है, यह वीरत्व हत्यारों के खून में कहीं भी नहीं है । उनके खून में है, दस्युओं, लुटेरों एवं हत्यारों की मानसिकता ।
__ आज ये हत्यारे-उन्हें किसी भी नाम से सम्बोधित किया जाए एक दिन पाकिस्तान के भयंकर शत्रु रहे हैं । मैं घृणा के इतिहास को दुहराना नहीं चाहता । वह पाप है । फिर भी गुजरे सत्य को उन्हें ही बताना है, कि आज जिस पड़ौसी पाकिस्तान से हथियार लाते हो, शस्त्र संचालन का एवं चोरी-छुपे घात लगाकर हत्याएँ करने का शिक्षण लेकर आते हो-राष्ट्र विभाजन के समय तुमने उनके साथ क्या किया था और उन्होंने तुम्हारे साथ क्या किया था ? बाल, युवा और वृद्ध पुरुषों का तो कतलेआम किया ही गया, किन्तु निर्दोष कन्याओं एवं महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किए गए, स्तन काट डाले गए, गुप्तांगों में भाले घुसेड़ दिए गए और उन्हें नग्न करके खुले बाजारों एवं गलियों में घुमाया
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