________________
से बाहर निकल कर आए हैं । 'लकीर के फकीर' कभी आगे बढ़ नहीं पाते । इस उक्ति के पीछे एक चोट है । याद रखिए आँख बन्द करके चलते रहने में कोई गौरव नहीं है । विचारों की, चिन्तन की, प्रज्ञा की आँख बंद करके चलने वाले अंधे इधर-उधर परस्पर टकराते, भटकते फिरेंगे । महान वे ही हैं, जो लकीर से हट कर अपनी प्रज्ञा से चलते जाते हैं । और, रही बात राह की? राह तो स्वत: बनती जाती है । इसलिए महापुरुषों का एक ही स्वर सदा गूंजता रहा है-तू ऊपर चढने के लिए है, एक शिखर से दूसरे, तीसरे शिखरों को पार करने के लिए है । तू वह पत्थर नहीं है, जो जहाँ पड़ा है वहीं पड़ा है और कभी तूफान, मूसलाधार वर्षा या भूकम्प का धक्का लगा और लुढ़क गया, तो पता नहीं लुढ़कता-लुढ़कता कहाँ अँधेरे में जा गिरेगा । तू तो मृत्युंजय का अमृत पुत्र है. 'अमृतस्य पुत्राः" अतः तेरा कर्म दिव्य हो तेरी वाणी दिव्य हो, तेरा मन विशाल एवं उदात्त हो । ऐसा नहीं कि तेरे जीवन के कर्म के पद-चिह्न यों ही धूल-कणों की तरह हवा में उड़कर समाप्त हो जाएँ । तेरा एक-एक कदम वज्र-सा हो । जो इस प्रकार दृढ़ संकल्प के साथ गतिशील होते हैं, वे ही कुछ कर जाते हैं-"उद्यानं ते नावयानं ।"
कुछ लोग सिद्धान्त की बात करते हैं, परन्तु आज विचरण कहाँ कर रहे हैं? एक आवाज लगाई गई थी मध्य-काल में कि अनार्य भूमि में नहीं जाना । परन्तु, जरा गहराई से विचार करें- आर्य भूमि कितनी-सी है? उस युग में साढे पच्चीस देश आर्य भूमि में गिने गए हैं । पूरा भारत भी आर्य भूमि में नहीं आता। आर्य भूमि में अंग है, बंग है, मगध है, आज के उत्तर प्रदेश, उडीसा, बंगाल एवं बिहार का कुछ हिस्सा है | दक्षिण कहाँ है आर्य भूमि? वह न जैन-परम्परा में आर्य माना गया है और न वैदिक परम्परा में । तमिल, आन्ध, बम्बई, जहाँ साधु-साध्वी बड़ी तेजी से भागे-भागे जा रहे हैं, वे तो आपके सिद्धान्त की भाषा में अनार्य देश हैं । कहाँ गए शास्त्र, कहाँ गया सिद्धान्त? जब समस्याएँ तथा अपेक्षाएँ आती हैं, तब गड़बड़ा जाते हैं । चिन्तन के अभाव में हमने भारत को खण्ड-खण्ड में बाँट दिया | परन्तु, ज्ञात है आपको भरत क्षेत्र किसका है? आदि तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र प्रथम चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर भारत बना है । सिर्फ हम ही नहीं, महर्षि शुकदेव श्रीमद् भागवत में कहते हैं-"येषां खलु महायोगी भरते ज्येष्ठः श्रेष्ठगुण आसीद्, येनेदं वर्ष भारतमिति व्यपदिशन्ति” सम्पूर्ण भारत सम्राट भरत के शासन में था । हमने उसे भी आर्य और अनार्य के खण्डों में बाँट दिया |
(४३२)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org