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अनेक प्रकार के जाति, पंथ एवं मत के भेदों की शृंखला में जकड़ी समाज की बेडियों को उसने तोड़ा था । जन-जन को उस बन्धन से उन्मुक्त किया था । दुर्भाग्य से आज हम पुन: उन्हीं शृंखलाओं में जकड़ गए हैं, गतिहीन हो गए हैं । अतः अपेक्षा है, महाप्रभु के दिव्य-संदेश को जन-जन तक पहुँचाने की । जो अभी तक उस दिव्य-देशना को सुन नहीं पाए हैं, उन्हें सुनाएँ । जो अभी तक व्यामोह की गाढ निद्रा में सोए पड़े हैं, अभी तक जागे नहीं हैं, उन्हें जगाएँ । जो अभी तक उठे नहीं हैं, उन्हें उठाएँ । जिन्हें किसी का सहारा नहीं मिला है, उन्हें सहारा दें, सहयोग दें । यह दिव्य ध्वनि है, ज्योति पुरुष महाप्रभु महावीर की ।
दिव्य-ध्वनि का अर्थ इतना ही नहीं है कि वह चार-चार योजन तक सुनाई देती थी । यह तो केवल शब्दों के सुनाई देने की सीमा है । उस दिव्य ध्वनि की, उस ज्योतिर्मय देशना की कोई सीमा नहीं है । वह तो देश काल की सीमाओं को लांघती रही है.--'दिक्-कालाधनवच्छिन्ना' वह तो अनन्त है । उसे हम आज भी सुन रहे हैं, पर सुनकर भी अनसुनी कर रहे हैं । उस दिव्य छवि को देखते हुए भी अनदेखा कर रहे हैं । अपेक्षा है, उस दिव्य-ध्वनि को सुनने की, उस ज्योतिर्मय छवि को देखने की, जो उसकी अन्तरात्मा है । विश्व-आत्मा शरीर की सीमाओं से परे होता है । जिसकी भाव-चेतना, जिसकी ज्ञान-चेतना, जिसकी कर्म चेतना विश्व को स्पर्श करती जाए, वह विश्व-आत्मा है । जो निरन्तर विराट बनती जाए और एक दिन विश्व-मंगल एवं विश्व-कल्याण का केन्द्र बन जाए, वही भगवद्आत्मा होती है । उस दिव्य-ध्वनि का एक मात्र यही स्वर है--बेसहारा को सहारा दें, गिरे हुए को ऊपर उठाएँ ।
इसका अर्थ है- अभाव-ग्रस्त जन-क्षेत्र में जन-कल्याण के संस्थान खड़े किए जाएँ । जहाँ पहले से ही सब-कुछ प्राप्त हो, वहाँ इस तरह के प्रयोजन अर्थहीन ही होते हैं । जैसे गंगा के तट पर कुँआ खोद रहे हैं और आवाज लगाते हैं कि हम प्यासों को पानी पिलाने के लिए कुँआ खोद रहे हैं | गंगा की पवित्र धारा जहाँ प्रवाहमान है, वहाँ कुँए की क्या महत्ता है? कुँए की महत्ता तो रेगिस्तान में हैं, जहाँ एक-एक बूंद के अभाव में प्राण पंखेरु उड़ रहे हैं । एक-एक बूँद के लिए प्राणी छटपटा रहे हैं, तड़प रहे हैं । वहाँ कुँआ खोदना महत्त्वपूर्ण है । तात्पर्य है, जो यथार्थता का परिज्ञान रखते हैं, समय को समझते हैं, उन्होंने ही महावीर को समझा है, उन्होंने ही उस विराट विश्व-आत्मा के दर्शन किए हैं।
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