Book Title: Chintan ke Zarokhese Part 2
Author(s): Amarmuni
Publisher: Tansukhrai Daga Veerayatan

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Page 187
________________ को पार करता हुआ निरन्तर आगे बढ़ता जाता है । एक दिन वह अपनी कक्षाओं को पार करता हुआ ऊँची से ऊँची शिक्षा प्राप्त करने में सफल हो जाता है । उस समय वह विद्वान बन जाता है और दूसरों को पढ़ाने भी लगता है । जो व्यक्ति एक दिन स्वयं पढ़ने वाला था, तो एक दिन वह दूसरों को पढ़ाने भी लगता है । इसका अर्थ यह है कि जब तक वह अल्पज्ञ था वह स्वयं छात्र था और जैसे-जैसे उसका ज्ञान बढता गया, वह अध्यापक हो गया । यही स्थिति साधना के संबंध में भी है । एक दिन स्वरूप की साधना प्रारम्भ करने वाला साधक साधना के पथ पर धीरे-धीरे कदम बढ़ाता है और फिर आगे चलकर वही व्यक्ति स्वरूप की पूर्ण साधना कर लेता है । इस प्रकार हम देखते हैं कि यह साधक चतुर्थ गुणस्थान में सम्यक्दृष्टि बनता है, पंचम गुणस्थान में देशव्रती बनता है । षष्ठ गुणस्थान में सर्वव्रती बनता है, सप्तम गुणस्थान में अप्रमत्त होकर तेजी के साथ आगे बढ़ता हुआ तेरहवें गुणस्थान में पहुँच कर वह पूर्ण वीतराग, सर्वज्ञ और सर्वदर्शी बन जाता है । साधना का यही क्रम है । गृहस्थ धर्म और साधु धर्म की बाह्य मर्यादा का भेद केवल पंचम और षष्ठ गुणस्थान तक ही रहता है, आगे के सभी गुणस्थानों में फिर साधना अन्तः प्रवाहित रहती है, अत: उसका एक रूप ही रहता है । इसी दृष्टि से मैं आपसे कह रहा था कि हमारी साधना जब तक अपूर्ण है, तभी तक उसमें साध्य और साधन का भेद रहता है । साधना की परिपूर्णता होते ही साध्य और सांधन का भेद भी मिट जाता है, फिर तो जो साध्य है वही साधन है और जो साधन है वही साध्य है । जैन दर्शन की यही निश्चय दृष्टि है और यही अद्वैत दृष्टि है । अहिंसा, तो अहिंसा है । वह अनन्त भी है और सान्त भी है । साधना की अवस्था में वह सान्त है और साध्य की अवस्था में पहुँच कर वह अनन्त हो जाती है । जो बात अहिंसा के सम्बन्ध में है, वही बात आत्मा के अन्य गुणों के सम्बन्ध में भी कही जा सकती है । कल्पना कीजिए, आपके सामने विशाल जल राशि है । उस सागर की विशाल जलराशि को सम्पूर्ण रूप में पीने की शक्ति हर किसी में नहीं हो सकती । पौराणिक कथा के अनुसार यह शक्ति अगस्त्य ऋषि में थी । एक आदमी एक गिलास पानी पी सकता है, दूसरा व्यक्ति एक लोटा पी सकता है, सम्भवतः एक व्यक्ति वह भी हो, जो एक घड़ा पानी पी जाए, किन्तु समस्त जलराशि को पीने की शक्ति हर किसी व्यक्ति में नहीं हो सकती, वह शक्ति तो अगस्त्य ऋषि में ही हो सकती है । अगस्त्य ऋषि के सम्बन्ध में पुराणों में कहा गया है, कि उसने समस्त समुद्र को एक चुल्लू में ही पी लिया था । (४३८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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