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दूसरा अंग सूत्र सूत्रकृतांग है । उसका वीरत्थुई नामक छट्ठा अध्ययन
देखिए
" एताणि वंता अरहा महेसी " सूत्रकृतांग, १, ६, २६ "सोच्चा य धम्मं अरहंत भासियं " वही, १, ६, २९
प्रस्तुत वीर स्तुति में 'अरहा है, 'अरिहा नहीं । साथ ही 'अरहंत है, 'अरिहन्त नहीं । सूत्रकृतांग के ही अध्ययन २, सूत्र १६४ में भी भगवान महावीर के लिए 'अरहा' शब्द का ही प्रयोग किया है तथाहि
" अरहा णायपुत्ते भगवं, वेसालीए वियाहिए" सूत्रकृतांग १, २, १६४
उत्तराध्ययन सूत्र के छठे अध्ययन की १८ वी गाथा में भी यही पाठ ज्यों-का-त्यों उल्लिखित है |
तृतीय अंग स्थानांग सूत्र में भी अनेकत्र 'अरहंत ' शब्द का ही प्रयोग
"खीणमोहस्स णं अरहओ तओ कम्मसा जुगवं खिज्जति"
-स्थानांग, ३, ४, ५२७ " धम्माओ णं अरहाओ संती अरहा तिहि सागरोवमेहिं तिच उभागपलिओवमऊणएहिं वीतिक्कतेहि समुप्पण्णे "
-स्थानांग ३, ४, ५३० " मल्ली णं अरहा तिहिं पुरिससएहिं सद्धि मुण्डे भविता"
-स्थानांग ३, ४, ५३२ " पासे णं अरहा तिहिं पुरिससएहिं सद्धि मुण्डे भविता"
-स्थानांग ३, ४, ५३३
समवयांग सूत्र में तो 'अरहंत' शब्द सर्वत्र व्याप्त है । जहाँ कहीं तीर्थंकरों के नामों का उल्लेख किया गया है, वहाँ 'अरहंत' शब्द ही प्रयुक्त हुआ है । विस्तार में न जाकर यहाँ उदाहरण के रूप में कुछ पाठ उपस्थित किए जाते हैं
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