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प्रबुद्ध पाठकों एवं साधकों को वस्तुस्थिति की यथार्थता का परिचय कराने के लिए ही यह मेरा रुग्णावस्था में भी संक्षिप्त किन्तु यथार्थ समुद्दिम है । आशा है मेरे अभिप्राय पर अनाग्रह बुद्धि से चिन्तन किया जाएगा ।
“बुद्धे फलं तत्त्व - विचारणं च”
यह महान सूक्ति किसी भी दृष्टि से उपेक्षित नहीं की जा सकती ।
जुलाई १९८६
"अर्हन्नित्यथ जैनशासनरताः । "
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