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दूर नहीं हो सकता । सामाजिक तथा धार्मिक परम्पराओं के नाम पर हमने अपनी आन्तरिक चेतना पर अन्ध-विश्वासों एवं विवेक शून्य मान्यताओं के इतने काले कम्बल डाल दिए हैं कि हम तर्कशील चिन्तन की स्वच्छ एवं मुक्त हवा में ठीक तरह सांस तक नहीं ले पाते । मध्यकाल के विवेक-पराङ्मुख काल में अनेक ऐसे धर्म-ग्रन्थों का निर्माण हुआ है, जिनमें धर्म तो क्या, धर्म की मूलधारा मानवता का कहीं स्पर्श तक नहीं है । अच्छे - बुरे कर्म के आधार पर मनुष्य की पवित्रता-अपवित्रता का विचार, पता नहीं कहीं अतल सागर में डूब गया और सतह पर रह गया, जातिवाद के नाम पर जन्मजात पवित्रता-अपवित्रता का, उच्चता-नीचता का दुर्विचार एवं दुर्व्यवहार | यहाँ तक कि निम्न जाति के गर्त में धकेल दिए गए मनुष्य को छूना तक पाप हो गया । पतिव्रता के पुनीत धर्म के नाम पर असहाय विधवाएँ पति के शव के साथ जीवित ही भस्म की जाने लगीं। देवी - देवताओं को प्रसन्न करने के लिए प्रतिवर्ष करोड़ों ही मूक पशु मौत के घाट उतार दिए गए । अब भी यह परम्परा बंद नहीं हुई है । बिहार में मुंगेर जिले के एक गाँव में किसी कल्पित देवी के आगे प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ला के प्रथम मंगलवार को एक ही दिन में लगभग आठ-दस हजार बकरे-भेड़ें काट दिए जाते हैं । भय और प्रलोभन का इतना गहरा अन्ध - विश्वास है कि कितना ही समझाइए, समझने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं होते । यह एक क्या, ऐसे अनेक स्थान हैं, जहाँ प्रतिदिन मूक - पशुओं के खून की धाराएँ बहती रहती हैं । हिन्दू, मुस्लिम दोनों ही इस जघन्य एवं क्रूर अन्ध-विश्वास के शिकार हैं । समस्या यह है कि इन तथा-कथित धर्म पुस्तकों पर, किसी पर ईश्वर की, तो किसी पर सर्वज्ञ महर्षि की मुद्रा लगी हुई है । ईश्वर और सर्वज्ञ की वाणी, भला कैसे असत्य हो सकती है, कैसे उसे छोड़ा जा सकता है? धार्मिक क्रिया-काण्ड के नाम पर मानव ने अपने शरीर को भी इतनी भयंकर यातनाएँ दी हैं कि हर सहृदय व्यक्ति का रोम-रोम काँप उठता है । भूसे की आग में जल कर मरे हैं, अनेक विद्वान कहे जाने वाले लोग भी । एक लंबी कहानी है, धार्मिक यातनाओं की | आज के बौद्धिक कहे जाने वाले युग में यातना की अनिवार परम्पराएँ चल ही रही हैं । क्या किया जाए, चलेंगी ही, क्योंकि ईश्वर और सर्वज्ञों का तथाकथित त्रिकालबाधित उपदेश जो है ।
मनुष्य का अन्तर्विवेक एक तरह से समाप्त ही हो गया है, इन धर्म ग्रन्थों के व्यामोह में | तर्क का तो नाम आते ही बिदकने लगते हैं, बुरी तरह भड़कने लगते हैं, तथाकथित धार्मिक जन । अत: धर्म के लिए विज्ञान का स्पर्श
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