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माना गया है । यही हेतु है कि विदेशों में गोवंश के पालन पर अनेक राष्ट्रों ने विशेष ध्यान दिया है । अमेरिका तो इन सब में अग्रणी रहा है। अमेरिका में गो-रक्षा के प्रति जितना ध्यान दिया जाता रहा है, वह अन्य अनेक देशों में भी एक आदर्श उदाहरण बन गया है, किन्तु खेद है, आज वहाँ क्या स्थिति है ? अब यह मति विमति के रूप में किस प्रकार परिवर्तित हो गई है ।
अभी कुछ ही समय पूर्व जर्मनी में लाखों गायें काटने की चर्चा समाचार-पत्रों में आई थी और उस पर प्राय: समग्र भारत में एक विकट हाहाकार मच गया था । अनेक अहिंसा प्रचार प्रधान तथा गो-रक्षक संस्थान उन गायों को बचाने की योजना में लग गए थे । अन्तिम परिणाम क्या हुआ, मुझे ठीक तरह मालूम नहीं है, परन्तु अभी एक और धमाका हो रहा है अमेरिका में । जो जर्मनी के धमाके से भी कहीं भयंकर है ।
जनसत्ता, दिल्ली २३ मार्च १९८६ के लाखों गायें काटी जानेवाली हैं, पत्र में लिखा हैसात फीसदी कम करने के लिए अगले सप्ताह जाने का कार्यक्रम है ।
अंक में समाचार है-अमेरिका में
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ये गायें १३,९८८ किसानों की हैं । इन्हें पहले गर्म सलाखों से दागा जाएगा, ताकि अन्य डेरीवालों को गैर-कानूनी तौर पर बेची न जा सकें । पशुओं के अधिकारों की वकालत करने वाले सैकड़ों गुट विरोध कर रहे हैं । विरोध कत्ल की बजाय इन्हें दागे जाने की बहशियाना निर्ममता' के खिलाफ
उनका
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है।
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अमेरिका में दूध का उत्पादन १० लाख गायों को कत्ल किए
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इस कार्यक्रम से अगले १८ महीनों में उत्पादन १२ अरब ३० करोड पाउण्ड कम होगा । इससे अमेरिकी सरकार को २३ अरब डालर की बचत होगी, जो उसे अगले तीन साल में यह दूध खरीदने व स्टोर करने पर खर्च करनी पड़ती ।
अमेरिका में हर साल ४० लाख गायें कत्ल की जाती हैं । इस बार संख्या में ९ लाख ५१ हजार और बढ़ोतरी होने की है ।
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