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खेद है, सर्व साधारण जनता से हमारा सम्पर्क टूट गया है । हम - अपने-अपने विशिष्ट वर्ग में अवरुद्ध हो गए हैं । इस संकीर्ण अवरोध से बाहर निकलना है, दूर दूर तक सर्व साधारण में पहुँच कर जन जन को संप्रदायातीत शुद्ध अहिंसा, दया, मैत्री, सद्भावना का धर्म-संदेश देना है, सुप्त एवं मूर्च्छित होती जा रही मानव की आन्तरिक मानवता को जगाना है ।
सितम्बर १९८५
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(३४५)
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