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आशा है, इस ज्योतिर्मय दीपावली - पर्व पर उस महतो महीयान अनन्त ज्योतिर्मय दीप को स्मरण करेंगे और स्मरण कराएँगे, ताकि अन्ध विश्वासों का, वैर-विग्रहों का, जाति या पंथगत आतंकवाद का अन्धकार नष्ट हो और विश्व को अहिंसा, दया, करुणा एव परस्परोपग्रह का दिव्य प्रकाश प्राप्त हो |
बन्ध-मोक्ष क्या बाहर में हैं ? कहीं नहीं हैं, कहीं नहीं हैं । तत्त्व-दृष्टि से देख स्वयं में, जो भी है, सब तुझ में ही है । तेरी भाव-चेतना जब भी, पूर्ण सुनिर्मल होती है । तभी मलिनता के बन्धन से, मुक्त चिदात्मा होती है ।
ज्योति पर्व : दीपावली १२ नवम्बर १९८५
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