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पर निर्भर है । हमें ऐसा मानव चाहिए, जो अपने सुख-दुःख की चेतना के साथ दूसरों के सुख दुःख को भी भली भाँति स्पष्ट कर सके । ऐसे मानव ही धरती के यथार्थ देव होते हैं।
फरवरी १९८६
(३६१)
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