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देखने मात्र से जीवन का सही विकास नहीं होगा। इस लोक में जीना है, तो इस. लोक के प्रति भी ध्यान देना होगा । हमारे आचार्य, हमारे महामुनि इन हजार वर्षों में आत्मा के लिए मुक्ति की बात तो करते रहे, पर गुलामी की शृंखला से मुक्त होने की बात किसी ने नहीं की। इसी का परिणाम है कि भारत गुलामी की जंजीरों में जकड़ता रहा | मैं इस अवसर पर ज्योति पुरुष युग-द्रष्टा ऋषभदेव का स्मरण करता हूँ, कि उस विराट पुरुष ने मानव-चेतना को जीवित रखा | उसने मनुष्य के हाथ में कर्म दिया । यदि ऋषभदेव कर्म के रूप में जीवन जीने की सात्त्विक कला नहीं सिखाते तो मनुष्य मनुष्य न रहकर पशु होता, पशु ही नहीं दानव बन जाता |
____ गाँधीजी भले ही आज नहीं हैं, परन्तु उनकी दृष्टि, उनका चिन्तन हमारे सामने है । मैं उनसे मिला हूँ । जब मैं मिला था, भारत में हिन्दू-मुस्लिम दंगे हो रहे थे। दोनों ही एक-दूसरे के प्राणों के प्यासे थे, खून बह रहा था । मैंने देखा गाँधीजी बेचैन थे। उन्होंने कहा-कुछ करो मुनिजी, मैं तो महावीर का ही काम कर रहा हूँ । मैंने भी अपनी शक्ति के अनुरूप हिंदु-मुस्लिम दोनों में परस्पर सौहार्द की स्थापना के हेतु तब कुछ किया भी था। परन्तु मन कांपता है, उस समय इतने भयंकर हत्या काण्ड हुए, माँ-बहनों की इज्जत पर प्रहार हुए, कुछ पूछिये नहीं । खेद है, उस समय अहिंसा का उपदेष्टा साधु-समाज क्या कर रहा था ? क्या वह इतिहास में एक अक्षर भी लिखा सकता है कि उसने ऐसा कुछ किया | इतिहास आपको क्षमा नहीं करेगा । वह अस्सी वर्ष का बूढ़ा बंगाल में दर-दर घूम रहा है । जहाँ गाँव के गाँव जलाए जा रहे हैं, मार-काट हो रही है, जहाँ मानव दानव बना खड़ा है, वह निर्भय एवं निर्द्वन्द्व भाव से घूमकर मैत्री-भाव का संदेश फैला रहा है | परस्पर फैलाए जा रहे घृणा-द्वेष एवं नफरत के विषाक्त भाव को दूर करके जन-जन के मन में प्रेम, मैत्री एवं स्नेह भाव के दीप जला रहा है । उसे इस बात की चिन्ता नहीं है कि कोई क्या करेगा। किसी ने गोली मार कर जीवन लीला समाप्त कर दी तो क्या होगा ? जो साधु प्रतिदिन उपदेश देते रहे हैं- मिट्टी का यह पिण्ड क्षणभंगुर है | आत्मा जो अजर-अमर है । उसका कभी नाश नहीं होता । वे साधु अपने क्षणभंगुर पिण्ड को बचाने हेतु पाकिस्तान से भागकर वायुयान से भारत आए । और दूसरी ओर यह बूढ़ा हिंसा के उफनते दावानल को शान्त करने उस जलती आग में गया | यह अजेय आत्म-शक्ति थी, निर्भय और निर्द्वन्द्व भाव की ज्योति थी, जिसके बल पर गाँधीजी ने उस
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