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भिषकर्म-सिद्धि भेद से दो प्रकार का हो सकता है । प्राकृत दोपो मे वसन्त मे कफ, गरद मे पित्त और वर्षा मे वात का कोप होता है । वैकृत में इसके विपरीत अर्थात् वमन्त में पित्त या वायु का, शरद् मे वात एवं कफ का तथा वर्षी मे पित्तऔर कफ का होना वैकृत दोष कहलाता है । इनके ज्ञान से रोग की सुखसाव्यता या कृच्छ नाव्यता का अनुमान रोगो के बारे मे होता है । जैसे वसन्त एवं शरद ऋतु मे प्राकृत दोषजन्य रोग सुखसाध्य होता है, इन ऋतुओ मे वैकृत दोपजन्य रोग कृच्छ्रमाध्य होता है । वर्षा ऋतु मे होने वाला प्राकृत वातिक ज्वर भी कृच्छ्रसाध्य होता है
प्राकृतः सुखसाध्यस्तु वसन्तशरदुभवः।।
वैकृतोऽन्यः स दुःसाध्यः प्राकृतश्चानिलोद्भवः॥ (चरक ) ससर्गज, ससृष्ट या उपद्रवयुक्त व्याधियो मे अनुवध्य और अनुवध के भेद से हेतुओ का दो भेद करना होता है, अनुवघ्य का अर्थ प्रधान या स्वतन्त्र हेतु और अनुवध का गौण या परतन्त्र हेतु है । रोग तथा दोप दोनो का सम्बन्ध विचारणीय होता है । रोग के सम्बन्ध मे विचारें तो प्रधान व्याधि अनुवंध्य कहलायेगी
और उसमे होने वाल उपद्रव अनुवध । चिकित्सा मे अनुवध्य या प्रधान हेतु के निवारण से अप्रधान का भी निवारण हो जाता है।।
इसकी पुष्टि मे चरक का वचन है "तत्रोपद्रवस्य प्राय प्रधानप्रशमात् प्रशम ।" कामला रोग दो प्रकार से होता है-१ पाण्डु रोग में अतिपित्तवर्षक द्रव्यो के सेवन से अनुबंध या परतन्त्र रूप मे अथवा २ स्वतन्त्र या अनुवध्य रूप मे । उपचार मे भेद करना होता है जहां पाण्डु अनुवध रूप में हुआ है, पाण्डु रोग की चिकित्सा से ही ठीक हो जाता है, परन्तु जहां वह स्वतन्त्र अनुवव्य रूप मे हुआ उसकी अपनी विशिष्ट चिकित्सा करनी होती है। वातकफज व्याधियो मे यदि कफ अनुवंध्य या प्रधान के रूप मे है वहाँ स्निग्ध उष्णोपचार लाभप्रद न रह कर रूक्षोष्ण उपचार लाभप्रद होता है। अस्तु, अनुवध्यानुवध भेद से भी हेतुओ का विचार करना समीचीन रहता है। - रोगी की प्रकृति, दृष्य एव दोष की प्रकृति का विचार भी हेतओ मे विशेपतः साध्यासाध्य विवेक के लिये करना अपेक्षित रहता है । यदि रोगो की प्रकृति, दूष्य की प्रकृति और दोष की प्रकृति तीनो समान हो जाय तो रोग असाध्य हो जाता है।
“न च तुल्यगुणो दृष्यो न दोषः प्रकृतिभवेत् ।” वाग्भट ने विप चिकित्सा मे भी विष प्रकृति (पित्त), विपकाल (वर्षा ), विष वर्धक अन्न (तिल, कुल्थी ), दोप (पित्त ), दूष्य ( रक्त ) " देश, सात्म्यादि, इनके एक साथ मिलने पर विष सकट बतलाया है । इस दशा में सैकडो मे कोई एक जीवित रहता है ।