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भिषकस-सिद्धि वंशलोचन, गुद्ध शिलाजीत प्रत्येक एक तोला । खरल में मिलाकर अर्जुन के छाल के वाय को भावना देकर ४-४ रत्ती को गोलियां बनाकर मुखाकर रख ले । नभी प्रकार के हृद्रोग में उत्तम लाम करता है ।
१३. चिन्तामणि रस-बुद्ध पारद, बुद्ध गधक, अभ्र भस्म, लोह भस्म, बंग भस्म । गुद्ध शिलाजीत १-१ तोला, स्वर्ण भस्म 1 नोला तथा चांदी भस्म
तोला ! प्रथम पारद एवं गंवक की इज्जली बनाकर शेर भस्मो को मिला। फिर चित्रक क्वाय, भृगराज स्वरम, अर्जुन का क्वाथ इनमे प्रत्येक में पृथक्-पथक मात-मात भावना देकर २-२ रत्ती की गोलियां बनाकर छाया में सुखाकर भीगी में भर कर रख ले । मात्रा-१-२ वटी दिन में दो बार । अनुपान-गेहूँ का क्पाय । यह बलवर्द्धक एव हृदय के लिये हितकारो रसायन है । विविध प्रकार के होगो में लाभप्रद है।
१४ विश्वेश्वर रस-सुवर्ण भस्म, अभ्रक भस्म, लौह भस्म, गुद्ध पारद, जुद्ध गंधक तथा वैक्रान्त भस्म १-१ तोला ले । प्रथम पारद बौर गंधक की. कम्जली बनाकर गेप भस्मो को मिलावै । फिर अर्जुन के स्वरन से भावित करके २-२ रत्ती की गोलियां बनावे। मात्रा १-२ गोला प्रातः-सायम् । अनुपानबर्जुन पत्र-स्वरम और मधु ।
१५ अजुन धृत-गोवृत १ प्रस्थ, बर्जुन कपाय ४ प्रस्थ ( अर्जुन को हाल २ प्रस्थ जल १६प्रस्य, सदशिष्ट ४ प्रत्य), अर्जुन की छाल कल्कार्थ प्रस्थ, मन्द अग्नि में घृत का पाक रे। मात्रा १-२ तोला अनुपान गाय का दूध ।
१६ पार्थाचरिष्ट या अर्जुनारिष्ट-अर्जुन की छाल ४०० तोले, मुनक्का २०० तोले, महुए का फूल ८० तोले, जल ६४ सेर । चतुर्थानावशिष्ट क्वाय वना ले। फिर छानकर एक भाण्ड में इस जल को लेकर उसमें धाय के फूल का चूर्ण ८० तोले और पुराना गई ४०० तोले मिलाकर संधिवधन करके रख दे । १ नान के बनन्तर छानकर फिर गीशियो में भर कर रख ले । मात्रा२ तोला । अनुपान नमान जल । दोनों समय भोजन के बाद ।
१७. रत्न एवं मणियो का धारण अयवा उनकी वती पिष्टियो का मुख से मेवन करना परम हय है। एतदर्थ कई योग व्यवहृत होते हैं । यहाँ जवाहर मोहरा नामक एक प्रनिद्ध योग का उद्धरण दिया जा रहा है। यूनानी वैद्यक में मणिगे को पिष्टिका का प्रचलन विशेष रूप से है। जवाहर मोहरामाणिक्य पिष्टि २ तोला, पन्ना को पिप्टि २ तोला मुक्तापिष्टि २ तोला, प्रवाल पिष्टि ४ तोला, कहावा नो पिप्टि २ तोला, चादी का वरक आधा तोला, सोने का वरक माग तोला, दरियाई नारियल का चूर्ण ४ तोला, आदरेशम कतरा हुआ २ तोला,