________________
६४४
भिपकर्म-सिद्धि करनी चाहिये । तिक्त रम द्रव्यो का पाचन एवं पथ्य स्प में अम्लपित्त में उपयोग करना चाहिये ।
पथ्यापथ्य-अम्लपित्त के रोगी को तिक्तभूयिष्ठ आहार एवं पेय देना उत्तम है। तोरण द्रव्य जैसे मिर्च, गर्म मसालो से रहित भोजन देना चाह्येि । जो, गेहूँ और धान के लाज का सत्तू मीठा बना कर देना चाहिये । चावल एवं दाल का व्यवहार-भोजन पूर्णतया वन्द कर देना चाहिये । अम्लपित्त मे कोई भी दाल प्रशस्त नहीं है, वैसे मू ग की दाल का सेवन किया जा सकता है। जाङ्गल पशुपक्षियो के मासरस, चीनी, मिश्री, बतागे, मधु, खौलाकर ठंडा किया जल प्रशस्त है । शाक-सब्जियो में अम्लपित्ती को परवल, करेला, खेखसा, मूली, लौकी, तरोई, नेनुवा, हिलमोचिका, सोमा,पालक, वथुवा, चौलाई, चने का गाक, वेत्र के मोपल, पका कुष्माण्ड, केले के फूल प्रशस्त है । फलो में कैथ, नारियल, केला, पका याम, मोमम्मी, विला, अनार वेदाना, मुनक्का, गुलकद, आंवले का मुरब्बा, वेर तथा अन्य कफपित्तगामक तिक्त, कपाय एवं मधुर रस प्रधान द्रव्य प्रगस्त है । गाय या भैंस का दूध भी अम्लपित्त में अनुकूल पडता है ।' ताजा मक्सन या घी भी दिया जा सकता है । मसालो में धनिया, जीरा, हल्दी, अदरक, कागदी नीवू, सेंधा नमक, भादि का उपयोग उत्तम है।
नया अन्न विगेपत. चावल, विरोधी अन्न, पित्तप्रकोपक भोजन, तिल, उटद, की दाल, वेगन, मछली, कुलथी, तेल, मिर्च-मसाले, दही, भेंड का दूध, काजी, लवण, अम्ल एव कटु रस द्रव्य, गरिष्ठ भोजन और मद्य आदि द्रव्य अम्ल पित्त मे अनुकूल नही पडते है । अस्तु, अम्लपित्ती को इन पदार्थो का परित्याग करना चाहिये । तेल में तली पूढी, पकोटी, आदि अपथ्य है। ___ अम्लपित्त में सामान्यतया गेहूँ, जो की रोटी, मूग की दाल या साबूत मूग का जूम और कपर में कथित शाक-सब्जियो का व्यवहार रखना चाहिये । रोटी, शार मोर दूध पर्याप्त मात्रा में रोगी को दिया जा सकता है। स्नेहो में घोड़े घी या मकचन का सेवन रखा जा सकता है। अम्लपित्त रोग मे पथ्यकर आहार पर विशेष ध्यान देना चाहिये । पथ्य आहार के अभाव में यह रोग अच्छा नहीं होता है। अम्लपित्त एक हठी रोग है, वर्षों तक चलता हुआ रोगी के लिये रोग न रहकर भोग स्वरूप बन जाता है. इस लिये पथ्य को अनुकूल १. निवतयिष्टमाहारं पानञ्चापि प्रकल्पयेत् ।
यवगोधूमविकृतीस्तीदणमस्कारजिताः। यथास्वलाजमयनुन् वा मितामधुयुनान् पिबेत् ।