Book Title: Bhisshaka Karma Siddhi
Author(s): Ramnath Dwivedi
Publisher: Ramnath Dwivedi

View full book text
Previous | Next

Page 749
________________ चतुर्थ खण्ड : तैंतालीसवॉ अध्याय ६६६ भल्लातक रसायन-भल्लातक एक तीक्ष्ण वीर्य एवं विविध अद्भुत कार्य करने वाली विषाक्त रसायन ओषधि है। इसकी उपमा अग्नि से दी गई है। जिस प्रकार अग्नि अति तीक्ष्ण, पित्तोत्तेजक एव पाचक होती है उसी प्रकार भल्लातक भी। विधि के अनुसार प्रयोग करने पर यह अमृत के तुल्य शरीर के लिये लाभप्रद होता है। कोई कफजन्य ऐसा रोग नहो, न ऐसा कोई विवन्ध है जिसको भिलावा शीघ्र नष्ट न कर दे । यह शीघ्र अग्नि बल को देनेवाला है।' भल्लातक सेवन काल में आंवला, मलाई, दूध, घो, तैल, गुड, जो का सत्त, तिल, नारियल, मूली का प्रयोग काफी करना चाहिये। कुलथी, दही, सिरका, तेल की मालिश, आग का तापना, धूप मे काम करना वन्द कर देना चाहिये। __ भल्लातक प्रयोग योग-भल्लातक घृत, भल्लातक, भल्लातक क्षौद्र, गुड भल्लातक, भल्लातक यूप, भल्लातक तैल, भल्लातक पलल, भल्लातक सत्तू , भल्लातक लवण, भल्लातक तर्पण इस प्रकार से दशविध प्रयोग चरक मे वर्णित हैं। __"यहाँ पर एक सहस्र भल्लातक रसायन का योग एवं सेवनविधि अष्टाङ्गहृदय के अनुसार उद्धृत की जा रही है जिसके सेवन किये व्यक्ति आज भी उपलब्ध हैं। ___ . अच्छी प्रकार से पके भिलावो को ग्रीष्म ऋतु मे एकत्रित करके धान्य राशि मे रख देवे । हेमन्त मे मधुर, स्निग्ध और शीतल वस्तुओ से शरीर को सस्कृत करके इनमे से आठ भिलावो को आठगुने जल में पकावे। इस क्वाथ का अष्टमाश शेष रहने पर इसमे शीतल होने पर क्षीर मिलाकर पिये। प्रतिदिन एक-एक भिलावे को इसमे बढाता जाये। इस प्रकार इक्कीस दिन तक बढाये । फिर तीन-तीन वढाये, जब तक इसकी सख्या चालीस तक न पहुँच जाये। फिर वृद्धि के क्रम से इनको घटाना आरम्भ करे। इस प्रकार सात सप्ताहो तक एक हजार भिलावो का सेवन करे। इनके सेवन में जितेन्द्रिय रहे, घी, दूध, शालि एवं साथी का भोजन करे । भिलावे के प्रयोग के बाद तीनगुने समय तक इसको वरतता रहे अर्थात् इवकीस सप्ताह तक यह विधि करे। इससे वह पूर्वोक्त १. भल्लातकानि तीक्ष्णानि पाकीन्यग्निसमानि च । भवन्त्यमृतकल्पानि प्रयुक्तानि यथाविधि ।। कफजो न स रोगोऽस्ति न विबन्धोऽस्ति कश्चन । य न भल्लातको हन्याच्छीघ्र मेधाग्निवर्धनम् ॥ ( च चि. १)

Loading...

Page Navigation
1 ... 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779