Book Title: Bhisshaka Karma Siddhi
Author(s): Ramnath Dwivedi
Publisher: Ramnath Dwivedi

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Page 758
________________ भिपकर्म - सिद्धि ७०८ रहता है। कि विद्वानो ने इसकी उत्पत्ति मे भोजन मे जम्बुकी धातु ( Iodine ) की कमी को कारण माना है । जलकुम्भी मे यह तत्त्व प्रचुर परिमाग में मिलता है । जनः लाभ भी होता है । अमृताच तैल - गिलोय, नीम की छाल, हंस की जड, कुटज की छाल, पिप्पली, बला, अतिबला, देववार प्रत्येक २ तोला । जल मे पीसकर कल्क बनावे, फिर इसमें नरमी तिल का तेल १ सेर, पानी ४ सेर मिलाकर अग्नि पर चटा तैल-पाकविधि में तेल का पाक कर ले | इसको दूध में मिलाकर 22 तो- १ तोले की मात्रा में पिलाना चाहिए ।' कांचनार गुग्गुलु का भी सेवन जा सकता है । मृताद्य तेल का नस्य भी उत्तम रहता है । आचार्य चरक ने लिखा है कि , दूध और कपाय रस के द्रव्यों का बहुलता से उपयोग करने से गलगण्ड नहीं होता है । अस्तु, गलगण्ड को चिकित्मा मे भी इन पोषक बाहारों का ध्यान रखना चाहिए। गण्डमाला - अपची प्रतिषेध ( Scrofula ) - कांचनार गुग्गुलु — कचनार की छाल २० तोला, सोठ, मरिच, पिप्पली प्रत्येक ५-५ तोळे, हर्रा, व्हेरा, बांवला प्रत्येक २|| तोले, वरुण की छाल १। तोला, तेजणन, छोटी इलायची के दाने तथा दालचीनी ४-४ मागे । सव को छूट छानकर चूर्ण घर हो । फिर इन समस्त चूर्ण के बराबर गुरु गुग्गुलु मिलावे । निफनाथ की भावना देकर २ माशे की गोलियाँ बनाकर रख ले | प्रातमा २-१ गोली । अनुपान हरीतकी, मुण्डो या खदिर का काढा या देवगड | पच्य तथा चिकित्सा क्रम गलगण्ड सदृग । गोप का अनुबन्ध हो तो एव लयवन उपचार भी करे । निम्नलिखित औपवि का उपयोग दृष्टर है। बनगोभी की मूल के नाथ उखाड़कर साफ करके पीसकर उसका एक छान ताजा रस निकालकर २|| मरिच के साथ लगातार इक्कीस दिनो लुखी को गर्म करके गांठ की जगहो पर बांध दे । लाव हो तो ४१ दिनो तक प्रयोग करे रोग निर्मूल हो जाता है | पंचतिक्त वृत गुलु (कुष्टाधिकार ) का उपयोग भी गण्डमाला, अपची, नाडीव्रणादि में लाव रहता है। १ क्षेत्रानिम्बहिन ह्वणवत्मक पिप्पलीनि । मित्र बंयन्त्रा च सदेवदार हिताय नित्यं गलगण्डगे | ( सु ) २ मान्न भवन्ति ते । (च.वि. २१ )

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