Book Title: Bhisshaka Karma Siddhi
Author(s): Ramnath Dwivedi
Publisher: Ramnath Dwivedi

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Page 770
________________ ७२० भिषकर्म-सिद्धि विवि से पकाये। जब तक मिद्ध हो जाय तो कपडे से छान कर भीगी उपगेग-गिर भूल के रोगियों में ६-६ वट की मात्रा दोनो नथुनो से । रोगी को चित नेटाकर नाल मे छोडे । घिर.शूल मे मद्य याराम मिलता है। अत्य नस्य-निर मूल में नन्य एक चिकित्सा का उत्तन साधन है। एतदर्थ कायकर की छाल का महीन कान्छन चूगं, नीबू (कागदी ) के रस का, अपामार्ग के रस का, फिटकरी और कपूर के महीन चूर्ण का अथवा नौसादर और चूने का मिलिज गध का भी उत्तम रहता है। एक नम्य और वडा उत्तम कार्य करता है इनको गीगी में बनाकर रखना चाहिये और बीच-बीच में गिर झूल में पोडित रोगी को मुंघा दिया करे । कपूर, सत बजवायन, पुदीने ना मत, लोहबान का सत मिश्रित ! कई वार शुद्ध नवु का संजन भी सद्य. निर लगानक होता है। रज.कृच्छ, रजोल्पता, रजावरोध रजाप्रवर्तिनी बटी-2. जुद्ध सोहागा १ भाग, हीराकासीस १ भाग, घी ने की हीग: भाग, मुसब्बर १ भाग । घृतकुमारी के रस में घोट कर ४-४ रत्तो की गोली बना ले। मात्रा-१-२ गोली दिन में तीन या चार वार जल में। २ कुमायोसब-भो भोजन के बाद २-२ चम्मच पोने को देना चाहिये । ३ मूली, मेयो और गाजर के बीज को वरावर लेकर बनाया चूर्ण मात्रा ३ माना । गुड़ के गर्म गर्वत से । रक्तप्रदर तथा योनिव्यापद U लिट्टामृत योग--2. शुद्ध सुवर्ण गैरिक, दुग्धपापाण, दन्तीभस्म, शुद्ध फ्टिकिरी, वाल पिष्टि । मम मात्रा में लेकर बनाना महीन चूर्ण । मात्रा १-२ माग दिन में दो या तीन वार । अनुपान केले की जड़ का रस १ छटांक या गृहर का गदा । यह श्वेत तथा रक्त दोनों प्रदर में उपयोगी है। / २. व या ततैग के हत्ते को जलाकर उनकी रात्र 1 ४-४ रत्ती की मात्रा में दिन में तीन बार गति भस्म २-२ रत्तो मिलाकर उत्तम कार्य करता है। रक्त मे बन्द मन्ना है। ३. पनी न्यूनर के बीट को माफ करके महीन चूर्ण करे । कपड़े से छान पर मीनी में भर ले। १.२ मा० की मात्रा में चावल के पानी से दे। उत्तम रन्तप्रदर नाना होता है।

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