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चतुथ खण्ड : बयालीसवाँ अध्याय
६६७ वाजीकर औषधि की प्रयोग विधि-जैसे मलिन वस्त्र पर बढिया रग नही चढता है उसके लिये सर्वप्रथम उसका खूब साफ धुला होना आवश्यक होता है-उसी प्रकार मलयुक्त शरीर मे वृष्य योगो का भी प्रभाव उत्तम नहीं दिखलाई पडता है--अस्तु वृष्य योगो या वाजीकरण औषधियो के सेवन कराने के पूर्व व्यक्ति का सशोधन अपेक्षित रहता है । सशोधन के, लिये व्यक्ति का विरेचन तथा निरूहण कराके कोष्ठ ( Pusgatives anemata) शुद्धि करानी चाहिये । स्रोतस के शुद्ध हो जाने पर व्यक्ति का शरीर शुद्ध हो जाता है-ऐसी स्थिति में सीमित मात्रा मे भी यथाकाल प्रयुक्त वहण योग परम वहण करता है और व्यक्ति को बल देता है। व्यक्ति का सशोधन उसके बल के अनुसार मृदु, मध्यम या तीन कर लेना चाहिये पश्चात् वाजीकरण योग का उपयोग करना चाहिये।
स्रोतःसु शुद्धेष्वमले शरीरे वृष्य यदा नामितमत्ति काले । वृषायते तेन पर मनुष्यस्तद् वृहण चैव बल्प्रदञ्च ॥ तस्मात्पुरा शोधनभेव कार्य बलानुरूप नहि वृष्ययोगा. । सिद्धयन्ति देहे मलिने प्रयुक्ताः क्लिष्टे यथा वाससि रक्तयोगाः ॥
(च चि २) वाजीकरण में अपथ्य--जो मनुष्य कामी, रति करने वाला या स्त्रियो का चाहने वाला हो वह अत्यन्त उष्ण, कटु, तिक्त, कपाय, रूक्ष, अम्ल, क्षार द्रव्यो का पत्र-शाक का तथा अधिक लवणयुक्त पदार्थों का सेवन न करे। ऐसो लोक तथा समाज मे प्रसिद्धि है :--
अत्यन्तमुष्णकटुतिक्तकषायमग्लं क्षारञ्च शाकमथवा लवणाधिकञ्च । कामी सदैव रतिमान् वनिताभिलाषी नो भक्षयेदिति समस्तजनप्रसिद्धिः ।।
(भै० २०) वाजीकरण योग--१ घृत मे भुनी हुई उडद की दाल प्रत्येक १-२ छटांक आधा सेर दूध में पकाकर खीर जैसे बनाकर उसमे मिश्री १ छटाँक मिलाकर सेवन । घृतभृष्टमाषदुग्धपायसो वृष्य उत्तम । अथवा साठी के चावल का भात घृत और उडद की दाल के साथ सेवन करना भो उत्तम वष्य होता है।
२ शतावरी १ छटाँक दूध आधा सेर, पानी आधा सेर डालकर पकावे जब दूध मात्र शेष रहे तो मिश्री डालकर सेवन करे।
३ पुरानी सेमल के मूल को लेकर उसका स्वरस निकालकर या क्वाथ बनाकर मिश्री मिलाकर एक सप्ताह तक सेवन करने से शुक्र की वृद्धि होती है।।