Book Title: Bhisshaka Karma Siddhi
Author(s): Ramnath Dwivedi
Publisher: Ramnath Dwivedi

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Page 727
________________ चतुर्थ खण्ड : तैतालीसवाँ अध्याय ६७७ गच्छतीति रस'। यह रस सम्पूर्ण धातुओ का आदि धातु है इसी के परिणाम से रक्त मासादि धातुओ का पोपण होकर शरीर स्वस्थ एव प्रभावान् रहता है। जवतक शरीर मे यह भ्रमणशील धातु रहता है, तब तक शरीर जीवित है । जव यह रस अपनी गति वन्द कर देता है तो जीवन भी समाप्त हो जाता है । रस को दानिको ने ब्रह्म माना है, "रसो वै स" अर्थात् वह ब्रह्म या आत्म-तत्व या जीवन-तत्व रस ही है । इस रस की महत्ता दर्शन कराने के लिए इतना कथन ही पर्याप्त है। रस की महत्त्व सूचक एक दूसरो दृष्टि भी है। रस को आदि धातु माना है अर्थात् इसके स्वस्थ या विकृत होने का प्रभाव गरीर के स्वास्थ्य एवं दु.स्वास्थ्य पर अवश्यभावि है। अस्तु, रस शुद्ध स्वरूप का बने और उससे स्वस्थ एव अविकृत धानुओ का निर्माण होकर शरीर का स्वास्थ्य चिरन्तन बना रहे इस प्रकार की विचारधारा का उदय भी स्वतः होता है "प्रीणन जीवन लेपः स्नेहोधारण पूरणम् । गर्भोत्पादश्च कर्माणि धातूना क्रमश स्मृतम् ।" रसायन शब्द मे दूमरा उपशब्द अयन है। अयन का प्रयोग मार्ग, आवास या प्राप्ति के अर्थ में पाया जाता है । यहाँ पर अयन शब्द प्राप्ति के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है । समास मे रसायन शब्द का अर्थ होता है उत्तम या प्रशस्त रस की प्राप्ति । इसकी प्राप्ति का जो मार्ग है वह है रसायन । इसी अर्थ मे आचार्य चरक ने रसायन शब्द को व्याख्या का है “लाभोपायो हि शस्ताना रसादीना रसायनम् ।" अर्थात् प्रशस्त रस आदि धातुओ के शरीर को प्राप्त कराने के उपाय को रसायन कहते है। किस प्रकार से प्रशस्त रसो का शरीर मे निर्माण हो और उससे शरीर को लाभ पहुचते हुए शरीर समुन्नत एवं स्वस्थ्य बन सके यह सब विधियां वैद्यक शास्त्र के जिस अग मे वणित की जाती है, उस अग को 'रसायन-तन्त्र' कहा जाता है। परिभापा.-आचार्य सुश्रुत ने रमायन तन्त्र की परिभापा करते हुए कहा है "रसायन तन्त्रं नाम वय स्थापनमायुर्मेवा वलकर रोग हरण ममर्थञ्च"। अर्थात रसायन तन्त्र वैद्यक तन्त्र का वह अंग है जिसमें वय स्थापन, (सौ वर्पतक आयु निरवच्छिन्न रखना ), आयुष्कर ( आयु को सौ वर्ष से भी अधिक बढाना ) मेधाकर (मस्तिष्क शक्ति को बढाना), वलकर ( स्वास्थ्य को अधिक शक्तिशाली या क्रियाशील बनाना), रोगापहरण (रोग का सदा के लिए दूर करना), तथा जरापहरण ( वाक्य दूर कर बहुत काल तक व्यक्ति को तरुणावस्था में रसना) प्रभृति साधनो का उल्लेख पाया जाता है । (सु० सूत्र १ अ) इस तन्त्र का प्रयोजन या सामर्थ्य वतलाते हुए इस अग का विशेपण "सर्वोपघात शमनीय रसायनम्" ( सु चि २७ ) अन्यत्र लिसा है । इसका साराश यह

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