Book Title: Bhisshaka Karma Siddhi
Author(s): Ramnath Dwivedi
Publisher: Ramnath Dwivedi

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Page 732
________________ ६८२ भिपम-सिद्धि योगो को प्रगंमा में लिखा है कि इनके सेवन से विना वृद्धावस्था का अनुभव किए हुए मनुप्य सौ वर्ष तक जीता है। ____ग्मायनो की प्रशंसा में यह समासोक्ति पर्याप्त है कि जैसे देवताओ के लिए अमृत है, मणे के लिए सुधा का स्थान है वैसे ही प्राचीन काल मे महपियो के लिए रसायद का म्यान था। इसके प्रभाव से न उनमे वृद्धावस्था आती थी न दुर्बलता, न रोगी होते थे और न मरते थे। रसायनो के प्रयोग से सहस्र वर्ष तक की आयु का निर्वाय भोग करते थे। फलत रमायन के सेवन से न केवल दीर्घायु की प्राप्ति होती है, प्रत्युत देवर्पियो के द्वारा प्राप्त होने वाली परमगति अर्थात् अक्षय ब्रह्म गति की भी प्राप्ति होती है।' दिव्यायधियो अथवा रसायनों का अवतरण .-प्राचीन काल में किसी समय गालीन एवं यायावर दोनो वर्ग के ऋपिगण — गालीन का अर्थ होता है घर बना कर गृहस्थ जैसे रहना और यायावर का अर्थ होता है भ्रमण करने वाले ), ग्रामीण या नागरिक लोग जिन औपधियो ( गेहूँ, यव, चावल आदि बाहार ) का भोजन करते है, उन्ही औषधियो का भोजन करते हुए सम्पन्न पुरुषो के सहग भारी शरीर, भारी पेट वाले और आलसी हो गये जिसके फलस्वरूप पूण निरोग नही रह गये । वे भृगु, अङ्गिरा, वशिष्ठ, अत्रि, काश्यप, अगस्त्य, पुलस्त्य, कामदेव, अमित और गौतम प्रभृत्ति महपि जब इस आहार के करने मे बत मे तपश्चर्या, पूजा-पाठ करने में भी असमर्थ हो गये तब उन्होने क्षीणताना वृद्धानां वालाना चाङ्गवर्द्धनः । म्वरक्षयं उरोरोग हृद्रोगं वातशोणितम् ।। पिपाना मुत्रगुक्रस्था दीपाश्चाप्यपकर्षति । अन्त्र मात्रा प्रयुजीत योपाध्यान्नभोजनम् ।। यन्य प्रयोगाच्चवन. मुवृद्धोऽभूत् पुनर्युवा । मेधा स्मृति कान्तिमनामयत्वं आयु प्रपं बलमिन्द्रियाणाम् । म्योपु प्रहर्ष परमाग्निवृद्धि वर्णप्रमाद पवनानुलोम्यम् ।। ग्मायनम्बाम्य नर प्रयोगाल्ल भेत जोर्णोऽपि कुटोप्रवेगात् । जराकृतं रूपमपान्य सर्व विनि रूपं नवयौवनस्य ॥ ( च चि १) १ यथा नराणाममृत तथा भोगवता मुधा । तथाभवन्महीणा रसायनविवि. पुरा। न जग न च दौर्बल्य नातुर्य निवन न च । जग्मुर्पमस्राणि रसायनपर पुरा ।। न वैवलं दीपंमिहायुरस्नुते रमायन यो विधिवन्निपेवते । गति म देवपिनिपेविता गुमा प्रपाते ब्रह्म तवैति चाक्षरम् । च. वि २

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