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भिपकर्म-सिद्धि वेवल हरीतकी को घृत मे भूनकर खाने तथा उस घृत के पीने से भी रसायनगुण होता है। मात्रा वडी हरड दो। अवधि १ वर्ष । बल एव आयु की प्राप्ति होती है ।
अमृतादि रसायन-गिलोय, मावले का फल, गोखरू के बीज । सम मात्रा मे बना चूर्ण मात्रा ६ माशा। घी १ तोला ओर चीनी आधे तोले के साथ मिलाकर सेवन । प्रयोगावधि ६ मास । यह एक उत्तम रसायन है जो जरावस्था को दूर कर केशो को काला करता और मनुष्य को पूर्ण युवक सदृश कार्यक्षम बनाता है।
गुडूच्यादि रसायन योग-गिलोय, अपामार्ग की जड, वायविडङ्ग, शखपुष्पी, वच, हरीतकी, कूठ और शतावर । इन द्रव्यो को सम प्रमाण मे लेकर चूणित करके गाय के घी और मिश्री के अनुपान से तीन दिनो तक सेवन करने से मनुष्य एक हजार श्लोको को कण्ठ करने योग्य हो जाता है । मात्रा ३ से ६ माशे । __ ब्राह्मी रसायन-ब्राह्मी, वच, हरीतकी, अडूसा और पिप्पली का सम प्रमाण में वना चूर्ण। मात्रा ३ मागा । अनुपान मधु और सेंधानमक । यह एक स्वर को वढानेवाला योग है। इसके एक सप्ताह के सेवन से ही कठ किन्नर सदृश हो जाता है।
त्रिफला रसायन-चरक सहिता मे कई पाठ त्रिफला रसायन के मिलते है। इनमें से किसी एक का प्रयोग एक वर्ष तक करने से सेवन करने वाला व्यक्ति बुटापा और रोग से रहित होकर सौ वर्ष की आयु प्राप्त करता है ।
१. भोजन के पूर्व दो बहेरे का चूर्ण, भोजन के तत्काल वाद चार भावले का चूर्ण और भोजन के पच जाने पर अर्थात् ४-५ घटे के अनन्तर एक हरीतकी का चूर्ण। मधु और घृत के अनुपान से चाट ले।
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१ हरीतकी सपिपि सप्रताप्य समश्नतस्तत् पिवतो घृतश्च । __भवेच्चिरस्थायि वल शरीरे सकृत् कृत साधु यथा कृतज्ञे । (वा. रसा.) २. अमृतामलकीविकण्टकाद्य हविषा शर्करया निपेवणेन । बजरा अमरा अपारवीर्या अलिकेशा अदिते सुता बभूवुः ॥
(4 जी ) ३. गुदूच्यपामार्गविडङ्गजिनीवचाभयाकुष्ठगतावरीसमा ।
वृतेन लोटा प्रकरोति मानव निभिदिन इलोकसहत्रधारिणम् ।। ४. नाहीवचाभयावासापिप्पल्यो मधुमैन्धवम् ।।
अन्य प्रयोगात्सप्ताहात् किन्नरै. सह गीयते ॥ (भा. प्र )