Book Title: Bhisshaka Karma Siddhi
Author(s): Ramnath Dwivedi
Publisher: Ramnath Dwivedi

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Page 737
________________ ६८७ चतुर्थ खण्ड : तैतालीसवाँ अध्याय आयुर्वेद के द्विविध प्रयोजनो का उल्लेख ऊपर हो चुका है। स्वस्थ को अधिक उर्जस्कर वनाना भी उसका एक अन्यतम प्रयोजन है। इसो निमित्त वाजीकरण एवं रसायन तन्त्रो का उल्लेख पाया जाता है । सुन्दर स्वास्थ्य के साथ दीर्घायुष्य की प्राप्ति भो मायुर्वेदोपदेश का उद्देश्य रहा है। इस उद्देश्य की पूर्ति रसायनो के द्वारा हो नम्भव है । लिखा है जो व्यक्ति विधिपूर्वक रसायनो का सेवन करता है वह केवल दीर्घायुष्य नहीं प्राप्त करता अपितु देव ऋपियो के द्वारा प्राप्त गति एवं अक्षर ब्रह्म को भी प्राप्त करता है। रसायन के प्रकार-सुश्रुत टोकाकार ने रसायनो के तीन प्रकार बतलाये है । १. काम्य रसायन २. नैमित्तिक रसायन ३ आजनिक रसायन । काम्य रसायन किसी विशेष कामना ( इच्छा या उद्देश्य ) से उपयोग में आने वाले रसायन है जैसे--प्राण कामीय, श्री कामीय, मेधा कामीय इत्यादि रसायन । नैमित्त-किसी रोग विशेष को दूर करने की इच्छा वा उद्देश से उपयोग में आने वाले रसायन जमे-शिलाजतु रसायन का कुण्ठ हरण के लिए प्रयोग, भल्लातक रसायन का कुष्ठ या अर्श व्याधि के दूरीकरण के निमित्त उपयोग, तुवरक रसायन का मधुमेह या कष्ट व्याधि नाशार्थ उपयोग। आजस्रिक-मे निरन्तर भोजन के रूप मे या नित्य अभ्याम के रूप मे व्यवहृत होनेवाले रसायन जैसे घृत या क्षीर का अभ्यास ऐसे द्रव्यो के सदा उपयोग से शरीर स्वस्थ रहता है । आयु एवं मेधा की वृद्धि होती है। १ सशोधन और २ संशमन भेद से भी रसायनो के दो भेद होते है । कुछ ऐसे रसायन द्रव्य होते हैं जिनके प्रयोग से शरीर का वमन, विरेचन, स्वेदन प्रभति क्रिया होकर देह की शुद्धि हो जाती है । पुन विकृत दोषो के निकल जाने के अनन्तर नवीन जीवन का सचार होता है। जैसे कि सुश्रुतोक्त सोम रसायन का प्रयोग । इसके विपरीत रसायनो का दूसरा वर्ग संशमन क्रियावाली दिव्य औषधियो का आता है । जिनके प्रयोग से सशोधन न होकर केवल सशमन मात्र से कार्य होता है। रसायनो का अधिकाश भाग संशमन वर्ग की औषधियो का हो है जैसे-आमलकी, नागवला, च्यवनप्राश रसायन आदि । रसायनो की प्रयोग विधि के अनुसार भी उनके दो वर्ग होते हैं। १ वातातपिक २. कुटो प्रावेशिक । इनमे कुटी प्रावेशिक प्रधान या मख्य विधि तथा वातातपिक गौण या अमुख्य विधि है ।' दूसरे शब्दो मे कुटीप्रावेशिक को १ रसायनाना द्विविध प्रयोगम्पयो विदु. । कुटीप्रादेशिक मुख्य वातातपिकमन्यथा ॥ -

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