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चतुर्थ खण्ड : तैतीसवॉ अध्याय २५३ पर छान कर उसमे सुवर्चला (हुरहुर या सूरजमुखी ) के बीज का चूर्ण ४ रत्तो और मधु ६ माशे मिलाकर पिलाना भी उत्तम रहता है ।
२१ एलादि चूर्ण-छोटी इलायची के दाने, पाषाणभेद, शुद्ध शिलाजीत, छोटी पिप्पली । सम भाग में बना चूर्ण। मात्रा २ माशा । अनुपान चावल का पानी।
२२. श्वेत पर्पटी, क्षार पर्पटी या सित चूर्ण-अच्छा कल्मी शोरा ४० तोला, फिटकरी ५ तोला और नौसादर २॥ तोला। सब का मोटा चूर्ण फरके मिट्टी की हाड़ी में पकावे । जब सब द्रव हो जाय तो जमीन पर गोवर 'विछाकर ऊपर केले का अखण्ड पत्ता रख कर उस पर डाल दे और तुरन्त उसके ऊपर दूसरा केले का पत्र रख कर दवा दे। ठंडा होने पर निकाल कर कपडे छान करके चूर्ण बना कर शीशी मे भर ले। इस योग का कई नामो से वैद्यपरम्पराओ मे व्यवहार पाया जाता है जैसे सितचूर्ण, ववक्षार, क्षार पर्पटी, गोतल पर्पटी और श्देत पर्पटी। मात्रा'१ से २ माशा । शीतल जल मे घोल चीनी के शर्बत मे मिलाकर या कर्पूरोदक मे मिलाकर या कच्चे नारियल के पानी के घोलकर ।
उपयोग-यह अच्छा मूत्रल, स्वेदल और वातानुलोमक योग है । अम्लपित्त, मूत्रकृच्छ, मूत्राघात, अश्मरी तथा पेट का अफारा मे प्रयोग करे । इसका स्वतंत्र या किसी क्वाथ में मिलाकर अथवा यवक्षार के साथ मिलाकर ( श्वेत पर्पटी २ माशा और यवक्षार १ माशा मिश्र १ मात्रा। चीनी के शर्बत में घोल कर पिलाना उत्तम रहता है।
त्रिकट्वादि या गोक्षुरादि गुग्गुलु (प्रमहाधिकारोक्त)-इस वटी का प्रमेह, मूत्राघात, मूत्रकृच्छ तथा अश्मरी में दूध या जल के अनुपान से प्रयोग करे।
तारकेश्वर रस-शुद्धपारद, शुद्ध गधक, लौहभस्म, वंग भस्म, अम्रभस्म, जवासा, यवक्षार, गोक्षुरबीज चूर्ण, हरीतकी चूर्ण प्रत्येक १ तोला । प्रथम पारद एवं गंधक की कज्जली बनाकर शेष द्रव्यो को मिलाकर कुष्माण्ड फल स्वरस, पचतृण कपाय तथा गोखरू के क्वाथ की, पृथक् पृथक् भावना देकर २ रत्ती के प्रमाण की गोलियाँ बनाले । मात्रा १-२ गोली दिन मे २ वार । उदुम्बर फल चूर्ण ३ तोला और मधु के साथ सेवन करावे। इस औपध के सेवन काल में हल्का पथ्य रखे । वकरी का दूध, गन्ना का रस या खांड का शर्बत पीने को दे । सभी प्रकार के मूत्राकृच्छ्र एवं मूत्राघात में लाभप्रद होता है।