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चतुर्थ खण्ड : चालीसवाँ अध्याय
स्नान, वमन एवं विरेचन तथा शोणितमोक्षण कराना प्रशस्त है । रोग की क्रियाक्रमों में वमन एवं विरेचन पर विशेष ध्यान देना चाहिये। वमन के लियेपटोल, निम्बपत्र और मदन फल का उपयोग तथा विरेचन के लिये त्रिफला चूर्ण का मधु के साथ सेवन.उत्तम रहता है। शीतपित्त मे संशोधन के पश्चात् निम्न लिखित संशमन योगो को देना चाहिये। ये सभी द्रव्य क्रिया मे Anti allergic or anti histaminic प्रतीत होते है । १. मधुयष्टि एवं शर्करा योग-मुलंठी ६ माशा और मिश्री १ तोला
मिलाकर जल से सेवन । प्रात. सायम् । २ आमलकी एवं गुड योग-आंवले का चूर्ण ६ मा०, पुराना गुड १ तोला
मिलाकर जल से सेवन । प्रातः-सायम् । ३. अजवायन एवं गुड योग-अजवायन ३ माशे, पुराना गुड १ तोला
मिला कर लेना । प्रात -सायम् । ४ घृत-मरिच योग-काली मिर्च ३ माशे, घृत १ नोला मिला कर सेवन ।
प्रात सायम् । ५. अरणीमूल-घृत योग–अरणोमूल का चूर्ण ६ माशे १ तोला धृत के
माथ नेवन । प्रात. सायम् । ६ आद्रक गुड योग-अदरक ३ माशे, पुराना गुड १ तोला मिलाकर
सेवन । प्रातः सायम् । ७ हरिद्रा चूण-३ माशे मिश्री या मधु १ तोला के साथ सेवन । प्रात -सायम् । ८ गुडूची-का क्वाथ बनाकर मधु के साथ सेवन । प्रात -सायम् । 8 गाम्भारी फल-पके गाम्भारी फल का दूध के साथ सेवन करना ।
प्रात -सायम् । १० निम्व पत्र-निम्वपत्र एवं आँवले का चूर्ण समभाग मे लेकर ३-६ माशे
घृत के साथ सेवन । प्रात:-सायम् । ११. पिप्पली-पिप्पली चूर्ण १ माशा घृत के साथ सेवन । प्रातः-सायम् । १२ लशुनका घृत के साथ सेवन । प्रात -सायम् । १३ पुनर्नवा-पुनर्नवा मूल ६ माशे, हरीतकी बडी २, मरिच ७ अडे और
मिश्री २ तोले का शर्बत बनाकर लेना। प्रात सायम् । १४ त्रिफला-त्रिफला चूर्ण ३ माशे की मात्रा में मधु के साथ सेवन । प्रात.-सायम् ।
नवकार्पिक क्वाथ-हरड, विभीतक, आँवला, नीम की छाल, मजीठ, वच, कुटकी, गिलोय और दारु हरिद्रा इन नौ द्रव्यो मे से प्रत्येक को एक एक कर्प लेकर अष्टगुण जल मे पकाकर चतुर्थांश शेष रहने पर उतार कर मधु