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चतुर्थ खण्ड : तैतीसवाँ अध्याय
५५५ त्राघात (Retention of urine or Distended Bladder)मे पेड़ के ऊपर ( वस्ति के उपरितन प्रदेश पर ) कई लेप करने से लाभ होता है। जैसे-१ सेमल के फूल को एरण्ड तैल मे पौस कर गर्म करके लेप करना।' २-चूहे की मीगी को केले के रस में पीस कर लेप करना।
४. धारा चिकित्सा--१. किशुक ( पलाश के फूल) का काढा बनाकर पेड़ के ऊपर गुनगुना छोडना २ मेघनाद ( वन चौलाई ) का गर्म गर्म लेप या काढा बना कर धारा रूप मे पेड़ पर छोडना। ३ कर्कोटक (खेखसा ) को गर्म करके सेकना या लेप करना या उसका काढा बनाकर पेड़ के ऊपर छोडना ४ केवल गर्म जल या गर्म तैल की धारा छोडना उत्तम रहता है। ५ विम्बी, कुन्दरू की लता की जड को काजी मे पीस कर गर्म करके पेड़ पर लेप करना या उसका पानी बनाकर.धारा के रूप मे छोडना ।
अन्य उपाय-लिङ्ग के छिद्र मे कपूर का चूर्ण २ रत्ती महीन पीस कर लिङ्ग मे छोडना । यदि इन उपायो से मूत्राशय रिक्त न हो तो मूत्रसारिणी रबर की नाडी (Rubber catheter) को मूत्रमार्ग मे लगाकर मूत्र को निकाले । यदि इससे भी मूत्र न निकले तो लौहनिर्मित मूत्र नाडी (Metal catheter) अथवा लोह शलाका (Metal sounds) का प्रवेश करा के मूत्र का निकालना
उत्तम रहता है। __अंत प्रयोज्य औषधियो मे मूत्रकृच्छ्रहर पूर्वोक्त औषधि योगो का प्रयोग ' हितकर होता है, जैसे--ककडी या खीरा के बीज, कुष्माण्ड स्वरस, गोक्षुर क्वाथ, तृण पंचमूल, श्वेत चदन आदि ।
कुछ विशेष योगो में-१. अशोक के बीजो का चूर्ण २ माशे शीतल जल पीसकर पीना । २. रुद्रजटा के मूल का मट्ठ के साथ पीसकर सेवन । ३ वटपत्री या पापाणभेद के पत्र को मट्ठ, तेल या घी के साथ पीसकर पीना। ४. मद्य मे इलायची का चूर्ण ४रत्ती, नागरमोथा का चूर्ण ४ रत्ती, सेंधा या कालानमक, अनार का रस और मधु मिलाकर सेवन करना । ५ शुद्ध शिलाजीत ४ रत्ती से १ माशा, शहद ३ तोला, शक्कर १ तोला, मिलाकर सेवन । ६ शुद्ध शिलाजीत ४ रत्ती, शक्कर ६ माशा, दशमूल कषाय के साथ। इनसे मूत्रकृच्छ्र मूत्रजठर, मूत्रातीत, वातवस्ति, अष्ठोला प्रभृति अवस्थावो मे रुका हुआ मूत्र सवित होता है । १ क्षतशल्यसमुद्भूतमूत्राघातनिवृत्तये ।
प्रवेशयेन्मूत्रमार्गे शलाका मूत्रसारिणीम् ॥ (भै र ) २ सशर्करं च ससित लोढ सिद्धं शिलाजतु । निहन्ति मूत्रजठर मूत्रातीतं च देहिनः ।।