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चतुर्थ खण्ड : नवॉ अध्याय
२६९ २॥ तोले, छोटी पीपल २॥ तोले, घृत भर्जितहीग २॥ तोले, करजवे के बीज को गुद्दी २॥ तोले, काली मिर्च २॥ तोले, छिला हुआ लहशुन २॥ तोले, पुनर्नवा का मूल २॥ तोले, सफेद (पीली ) सरसो २॥ तोले, जरा सेंका हुआ जोरा २॥ तोले, अतीस २॥ तोले, सामुद्र लवण २॥ तोले। (सि यो सं)
निर्माणविधि-स्वच्छ कपडे से छने जम्बीरी या कागजी नीबू के रस मे सेधा नमक डाल कर एक कांच के वत्तन मे भर कर चार दिनो तक धूप में रखे । पांचवे दिन उस रस को मिट्टी के बर्तन में रख कर मद आँच पर पकावे और लकडी के हत्थे से हिलाता रहे जब रस गाढा हो जाय तो उसमे अन्य द्रव्यो का सूक्ष्म कपडछन चूर्ण मिलाकर नीचे उतार कर ठडा होने पर, ३-३ रत्ती की गोलियाँ बना कर मुखा ले । मात्रा-अनुपान-२ या तीन गोली यथावश्यक जल से दिन में तीन या चार बार । उपयोग-ये गोलियां उत्तम पाचन और दीपन है। मन्दाग्नि, अरुचि, पेटका दर्द, अजीर्ण के सभी प्रकारो मे और आध्मान मे लाभप्रद पायी गई है।
कुबेराक्षादि वटी-बालू मे भुना करज ( कटु ) वीज १ तोला, मट्ठे मे भिगो कर धोकर घी मे भून कर लहशुन १ तोले, सोठ १ तोला, घी मे भुनी होग १ तोला, शुद्ध सुहागा १ तोला। सहिजन के रस या काढे मे खरल करके ४-४ रत्ती की गोली बनाकर । सभी प्रकार के अजीर्ण और उदरशूल मे लाभप्रद ।
चित्रकादि वटी-चित्रक के मूल की छाल, पिप्पलीमूल, सज्जीखार, यवाखार, सेंधा नमक, काला नमक, सामुद्र लवण, सांभर लवण, नौसादर, शुण्ठी, काली मिर्च, छोटी पीपल, घी मे सेकी होग, अजमोद और चव्य प्रत्येक सम भाग । एकत्र चूर्ण करके कागजी नीबू, विजौरा नीबू, खट्टे अनारदाने के कषाय से ३ दिन तक मर्दन करके १ माशे की गोली। २ से ४ गोली भोजन के बाद जल से। यह एक अच्छा पाचन और दीपन योग है। विषमाग्नि मे विशेष लाभप्रद होती है।
महाशंख वटो-सेधा नमक, काला नमक, सामुद्र लवण, माभर लवण, नौसादर, घी में भुनी हीग, शख भस्म, इमली का क्षार ( टार्टरिक एसिड), सोठ, काली मिर्च, छोटी पीपल, शुद्ध गधक, शुद्ध पारद और शुद्ध वत्सनाभ । सबका सम भाग मे चूर्ण बनाकर विजौरा नीबू, अनारदाने (खट्टे) और कागजी नीवू की सात भावना देकर दो दो रत्ती की गोलिया। भोजनोपरान्त ।१-२ गोली।
अजीर्णकण्टक रस-शुद्ध पारद, शुद्ध गधक, शुद्ध वत्सनाभ १-१ तोला, काली मिर्च का चूर्ण ३ तोले । कज्जली बना कर चूर्णो को मिला कर पीस कर कण्टकारी फल स्वरस या कषाय से २१ बार भावित करना चाहिये । २ रत्ती