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चतुर्थं खण्ड : बाइसवाँ अध्याय ४४३ सात्त्विकांश के सत्त्व भेद-( शुद्ध सत्त्व मे कल्याणाश कल्याण के भावो की अधिकता होती है।)
ब्राहा सत्व-पवित्र, सत्यप्रतिज्ञ, जितात्मा, सम्यक् विभाग करनेवाला, जान-वचन-प्रतिवचन सम्पन्न, स्मृतिमान्, काम-क्रोध-लोभ-मान-
ईर्ष्या-अहर्प आदि दर्गणो ने रहित सभी जीवो को समान भाव से देखने वाला ब्राह्म सत्त्व का व्यक्ति होता है।
आप सत्त्व-यज्ञ-अध्ययन-व्रत-होम-ब्रह्मचर्य पर, अतिथिसेवक एव मदमान-रागद्वेप-मोह-लोभ-रोप आदि से रहित तथा प्रतिभा-वचन-विज्ञान-अवधारण शक्ति से युक्त ऋपि सत्त्व का व्यक्तित्व होता है।
ऐन्द्र सत्त्व-ऐश्वर्यवान, आचरण करने योग्य वचन बोलनेवाला, यज्ञ करनेवाला, शूर, ओजस्वी, तेजस्वी, प्रशस्त कार्य करनेवाला, दीर्घदर्शी, धर्म-अर्थ और काम की प्रवृत्ति मे अभिरत इन्द्र सत्त्व का व्यक्तित्व होता है।
याम्य सत्त्व-कर्तव्याकर्तव्य का विचारक, अवसर के अनुसार कार्य करनेवाला, जिस पर प्रहार न हो सके ( असप्रहार्य ), सतत कार्य के लिये तत्पर, ऐश्वर्यवान्, राग-ईर्ष्या-मोह आदि से रहित याम्य सत्त्व का व्यक्तित्व होता है।
वारुण सत्त्व-शूर, धीर, पवित्र, अपत्रिता से द्वष रखनेवाला, यज्ञ करने वाला, जल-विहार की रुचिवाला, प्रशस्त कार्य करनेवाला, समयानुसार और प्रसग के अनुसार कोप करने वाला या प्रसन्न होनेवाला वारुण सत्त्व का व्यक्तित्व होता है।
कौवेर सत्त्व-स्थान-मान-उपभोग और परिवार से सम्पन्न, धर्म-अर्थकाम नित्य, पवित्र, सुख एव विहार करने वाला, स्पष्ट क्रोध तथा प्रसन्नता युक्त, कोवेर सत्त्व का व्यक्तित्व होता है। ____ गांधर्व सत्त्व-प्रिय लगनेवाले-नृत्य - गीत - वादित्र- उल्लापक -श्लोक आख्यायिका इतिहास-पुराण आदि मे कुशल, गंध-माल्य-अनुलेपन-वस्त्र-स्त्री-विहार काम-नित्य, अनिन्दक या ईर्ष्या न करनेवाला व्यक्तित्व गाधर्व सत्त्व का होता है।
राजस अंश के सत्त्व-भेद-( इन व्यक्तित्वो मे रोषाश या क्रोधाश की अधिकता होती है । )
आसुर सत्त्व-शूर, प्रचण्ड, निन्दक, ईर्ष्यालु, ऐश्वर्यवान्, बहुत खानेवाला। -राक्षस सत्त्व-कोप करनेवाला, अवसर या छिद्र पाकर प्रहार करनेवाला, क्रूर, अतिमात्रा में आहार करनेवाला, मास की अतिशय चाह करनेवाली, ईर्ष्या करनेवाला, अधिक सोने तथा परिश्रम करनेवाला राक्षससत्त्व का व्यक्तित्व होता है ।