________________
४६६
भिपकर्म-सिद्धि
देवदारु का बुरादा और गिरोप की छाल प्रत्येक २॥ सेर, लाक्षाचूर्ण तथा लोध्र प्रत्येक १। सेर । इन सवो को जीकुट कर एक बडे भाण्ड में ४२ मन जल मिलाकर बडी भट्टी पर चढाकर क्वाथ करे । शेप जल २५ सेर ४८ तोले रहने पर क्वाथ को नीचे उतार कर ठडा कर के छान ले।
फिर एक बड़े कडाहे मे तिल-तैल १३ सेर ४८ तोले लेकर अग्नि पर चढाकर उसको मूच्छित करके उसमें उपर्युक्त क्वाथ, एवं उस क्वाथ को जो इस प्रकार का बना हो, गाय का दूध आठ सेर, गाय की दही ८ सेर, दही का पानी ८ सेर, गन्नो का रस १६ सेर, बकरे का मास १५ सेर, ३६ सेर जल मे क्वथित कर १३ मेर ४८ तोले शेप रहने पर उतार कर कडाहे में डाले। फिर उसमे मजीठ का काढा १३ सेर ४८ तोला डाले । पश्चात् निम्नलिखित विधि से बने काजी का १२ सेर १२ छटांक डाले ।' अब तीन प्रकार के कल्को को डाल कर प्रत्येक से पृथक् पृथक् तेल का पाक करे।
प्रथम कल्क-भिलावे ( भल्लातक ) फल की मज्जा, पिप्पली, शुण्ठी, कालोमिर्च, प्रत्येक २४ तोले, हरड, वहेरा, आँवला, सरल काठ, वच, सौंफ, काकडामीगो, चोरपुष्पी, कचूर, मोथा, नागरमोथा, कमल, नीलकमल, पिपरामूल, मजीठ, असगंध, पुनर्नवा पचाङ्ग, दशमूल, चक्रमर्द, रसाञ्जन, गधतृण, हरिद्रा तथा जीवनीय गण की औपधियाँ पृथक् पृथक प्रत्येक १२-१२ तोले । पत्थर पर पीस कर इस कल्क के साथ पाक करे यह प्रथम पाक हुआ । अव तेल को पक जाने पर छान ले और कड़ाही में लेकर अग्नि पर चढाकर द्वितीय कल्क के माथ द्वितीय पाक प्रारम्भ करे ।
द्वितीय पाक प्रकार-फिर लोग, बोल, तेजपात, राल, छैल छरीला, प्रियगु, खस, सौफ, जटमासी, देवदारु, वलामूल, नलिका, खोटो, छोटी इलायची, कुन्दरु, मुरामासी, तीनो प्रकार की नखी (काकोदुम्बरपत्र, अश्वखुर, उत्पलपत्र), तेजपात, कपूरकचरी, खट्टाशी (पूति ), चम्पे की कलिया, मनफल, हरेणुका स्पृक्का (असवरग), मरुवे का फूल ( मरुवक पुष्प ) प्रत्येक १२ तोले । सव को जल
१. महाराजप्रसारणो तेल की काजी का निर्माण-प्रकार-चावल का माड ६४ तोले, काजी १६ सेर. दही ३२ तोले. पराना गड ६४ तोले, मुली ३२ ताल, ठिलो अदरक ६४ तोले, छोटी पीपल, श्वेतजीरा, सेंधानमक, हल्दी, कालीमिर्च प्रत्येक ८-८ तोला । मब को एक मृत्पात्र मे मुख को बंद करके रखे । ८ दिनो के पश्चात् शुक्त को निकाले । इस गुक्त में फिर इलायची, नागकेसर, दालचीनी, तेजपात प्रत्येक का चूण ३-३ तोले छोड कर रखले ।