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चतुर्थं खण्ड : वारहवाँ अध्याय
३६१ चदन, शालपर्णी, पृश्निपर्णी, छोटी तथा बडी कटेरी, गोखरू, मुद्गपर्णी, विदारी कद, असगध, मापपर्णी, आंवला, शिरीप को छाल, पद्माख, खस, सरल काठ, नाग केसर, प्रसारणी की जड अथवा प चाङ्ग, मूर्वामूल, प्रियङ्ग नील कमल, सुगध वाला, वला और अतिवला को जड, कमल कंद, कमल की डडी प्रत्येक ८ तीले श्वेत पुष्प वाली वला का पंचाग २॥ सेर लेकर २५॥ सेर ८ तोले जल मे छोड कर बडे भाण्ड मे रखकर अग्नि पर चढावे और चतुर्थांश शेष क्वाथ बनावे । फिर उसमे बकरी कद दूध, शतावर का स्वरस, लाक्षा का रम, काजी और दही का पानी प्रत्येक ३ सेर १६ तोले, हरिण-बकरी-खरगोश के मास का चतुर्गुण जल मे पकाया काढा १० सेर डाले। अब मूछिन तिल तैल ३ सेर १६ तोले लेकर उसमे इस काढे को डाल कर तथा निम्नलिखित द्रव्यो का कल्क छोड कर मद आंच पर पका कर तैल को सिद्ध करे। कल्क द्रव्य-श्वेत चदन, अगुरु, शीतल चोनी, व्याघ्रनखी, शिलारस, नागकेसर, तेजपत्र, दालचीनी, कमलमूल, हल्दी, दारु हल्दी, श्वेत अनन्तमूल, काला अनन्तमूल, लाल कमल, तगर, मोठा कूठ, त्रिफला, फालसे की छाल, मूर्वा, गठिवन, नालुका, देवदारु, सरल काष्ठ, पद्मकाप्ट, धायके फूल, कच्चे विल्वफल की मज्जा, रसाजन, मोथा, नेत्रवाला, वच, मजीठ, लोध, सौफ, जीवनीय गणको औपधियां, प्रियंगु, शटी, एला, कुकु म (केशर), सट्टाशी, कमल केसर, रास्ना, जावित्री, सोठ और धनिया प्रत्येक २ तोले । तैल के सिद्ध हो जाने पर नीचे उतार कर छान कर उसमे सुगधित द्रव्य, कस्तूरी, कपूर और केशर मिलाकर रख लेना चाहिये। इस तेल का अभ्यग, जीर्ण ज्वर, राजयक्ष्मा, रक्तपित्त, उर क्षत तथा धातुक्षीण रोगियो मे पुष्टिकर होता है।
चदनवलालाक्षादि तैल-चदन, नागवलामूल, लाख और लामज्जक प्रत्येक एक सेर, जल १६ सेर को अग्नि पर चढाकर चतुर्थाश शेप क्वाथ बनाले । इस क्वाथ मे निम्नलिखित कल्क और ४ सेर दूध और २ सेर तिल तैल सिद्ध करले । कल्क द्रव्य-सफेद चदन, खस, मुलैठी, सोया, कुटकी, देवदारु, हल्दी, कूठ, मजीठ, अगर, नेत्रवाला, असगध, खिरेटी, दारु हल्दी, मूर्वा, मोथा, मूली, इलायची, दाल चीनी, नागकेसर, रास्ना, लाख, अजमोद, चम्पक, शिलारस, सारिवा, बिडलवण और सेधा नमक प्रत्येक समान भाग मे कुल मिलाकर आधा सेर।
इस तेल के अभ्यग से जीर्ण ज्वर, रक्तपित्त, यक्ष्मा, दौर्बल्य, श्वास, कासादि रोग दूर होते है । सभी धातुवो की वृद्धि होती है। ।
बादाम का तेल ( रोगन वादाम)-श्वास, कास तथा राजयक्ष्मा मे बादाम का प्रयोग बडा उत्तम माना गया है । इसके सेवन के दो प्रकार है