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चतुर्थ खण्ड : चौदहवाँ अध्याय
३८५ झोको से रहित और उष्ण स्थान मे रखे। पश्चात छान कर बोतलो मे भर कर रख ले । मात्रा २-४ तोला । समान जल मिला कर भोजनोत्तर । श्वास रोग मे एक उत्तम योग है।
शर्वत एजाज, शर्वत शहतूत, गर्वत लिसोडा और शर्बत अडूसा भी । लाभप्रद होता है।
सोम कल्प-एफेडा वल्गेरिस ( Ephedra. Valgari) नामक औषधि का चूर्ण ४ रत्ती से १ मागा की मात्रा मे देने से तत्काल लाभ होता है। तमक श्वास ( दमा) के दौरे के काल मे दौरे के वेग को तत्काल कम करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। सोम-सत्त्व ( Ephedrine Hydroch. loride ) नाम से इस औषधि का प्रयोग बहुलता से हो रहा है। इसकी मात्रा
ग्रेन से १ ग्रेन की गोलियाँ औषधि विक्रेताओ से प्राप्त होती है । वैद्यक दृष्टि से सोम चूर्ण का ( Crudeform ) मे प्रयोग ही अधिक समोचीन होता है ।
इसे शृगाराभ्र, श्वास कुठार, श्वासकासचिन्तामणि या महाश्वासारि लौह के माथ २ रत्ती की मात्रा मे प्रति मात्रा मिलाकर दिया जा सकता है।
यदि स्वतत्र देना हो तो रस सिन्दूर के साथ मिलाकर देना उत्तम रहता है। जैसे सोम योग (सि० यो० संग्रह)-रस सिन्दूर १ भाग, सोम चूर्ण २० भाग । प्रथम रस सिन्दूर को महीन पोसे फिर उसी खरल मे सोम चूर्ण का कपडछन चर्ण मिलाकर एक दिन मर्दन करके शोशी मे भर कर रखले । इस चूर्ण का अकेला ५ से १० रत्ती की मात्रा में जल या मधु से श्वास के दौरे के समय एक दो मात्रा दे । तात्कालिक अच्छा लाभ होता है।
-श्वासहर धूम-१ धतूरे को पत्तो, शाखा और फल को कूट कर छाया मे सुखाले । फिर निर्धूम अगारे पर रख कर मध्य छिद्र युक्त सकोरे से ढक दे, फिर रबर की नली लगा कर धूम का पान करे । इसको तम्बाकू पीने वाली चिलम और हुक्के पर चढा कर पिया जा सकता है। इससे श्वास के दारे मे तात्कालिक लाभ होता है।
२. धूमयोग-(सि० यो० स० ) छाया मे सुखाई हुई अडूसे की पत्ती ४ भाग, धतुरे की पत्ती २ भाग, भाग २ भाग, चाय २ भाग और खुरासानी अजवायन की पत्ती २ भाग। सबको मिलाकर मोटा चूर्ण करके कलमी शोरे के सतप्त विलयन ( कलमी सोरे को जल मे घोलता चले जब ऐसी स्थिति आजावे कि , १. कनकस्य फल शाखा-पत्र सकुटय यत्नत ।
शोपयित्वा तु तद्धूमपानोच्छ्वासो विनश्यति ।। (भ० र०) ५ भि सिर