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चतुर्थं खण्ड : चौदहवॉ अध्याय
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६ माशे
वक्त ।
६१) श्वासकासचिन्तामणि रस २ र० ) श्वासकासचिन्तामणि सुलभ शृगाराभ्र रस
न हो या अधिक मूल्यवान प्रतीत शिलाजत्वादि लौह
हो तो हटा दे। सखिया के योगो श्वास कुठार रस
का देना अधिक लाभप्रद प्रतीत मोम चूर्ण
हो तो मल्लसिन्दूर या मल्ल यवक्षार
चद्रोदय दिन भर मे १ रत्ती तालोशादि चूर्ण
मिलाया जा सकता है। श्वास
) कुठार भी सखिया का योग है। मवको मिलाकर पीस कर ४ मात्रा में विभाजित करे ।
अनुपान-केवल मधु से या केवल अडूसे के शर्वत से या केवल शर्बत एजाज से या शर्वत एजाज, शहतूत, लिसोढा और अडूसे के मिश्रण से। ४-४ चटे पर दिन मे चार वार । (२) अर्क लवण-४ माशे २ मात्रा, भोजन के बाद एक मात्रा दोनो
अथवा कनकासव-भोजन के बड़े चम्मच से दो चम्मच वरावर पानी मिलाकर दोनों वक्त।
(३) वासादि कपाय-दिन मे एक वार प्रात या रात्रि मे । अनूर्जता (Allergy ) के तीक्ष्ण मिलने पर विशेष लाभ होता है । श्वास रोग मे दो प्रकार की चिकित्सा अवस्थाभेद से को जाती है। दोरे के समय को वेगकालीन तथा वेगो के बीच वेगान्तर कालीन । वेगकालीन चिकित्सा तत्काल दौरे को शात करने के लिए धूम प्रयोग, सोम कल्प या अर्क लवण २ माशे की मात्रा मे गर्म पानी से देना उत्तम रहता है । वेगान्तर काल में पौष्टिकं, वल्य तथा अन्य ... सशामक योगो का प्रयोग श्रेयस्कर रहता है।
पथ्यापथ्य-तमक श्वास के रोगी मे पथ्यापथ्य का विवेक आवश्यक रहता है । वातश्लेष्मकर एव रूक्ष तथा शीत आहार-विहार अनुकूल नही पडते है। नया गुड, दधि, नया चावल, उडद, मत्स्य, वैगन, कद शाक, ठडा दूध, लस्सी, वर्फ का शर्वत, ठडाजल, ठडे और धूलि-धम युक्त स्थान, अधिक परिश्रम-अति स्त्री सग, मलमूत्र, छीक आदि के वेगो का रोकना आदि अपथ्य है ।
पथ्य-गर्म किया हुआ गाढा दूध, मलाई, मिश्री, पुराना गुड, चने, रहर की दाल, गेहूँ, जौ, पुराना चावल, वथुवा, चौलाई, मूली, परवल, लहसुन, प्याज आदि गर्म मसाले, विरेचन, स्वेदन, औपधि युक्त धूमपान, वमन आदि कर्म प्रशस्त