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चतुर्थ खण्ड : बाइसवॉ अध्याय
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सात सात्त्विक अश से और छ राजस अग से युक्त व्यक्तित्वो का विविध नाम से आस्यान किया गया है । वैकारिक अवस्थावो मे इनके आधार पर ही किस सत्व का आवेश किसी व्यक्ति में हुआ है इसका विनिश्चय किया जा सकता है । ग्रहावेश या भूतावेश दो प्रकार के होते हैं-देव कोटि के या पिशाच कोटि के । अथवा महासत्त्व ( बलवान् ) तथा अल्पसत्त्व ( कमजोर ) ।
आयुर्वेद अथर्ववेद का एक उपाङ्ग है । अथर्ववेद मे भूतविद्या तथा मत्रचिकित्सा का प्रचुर वर्णन पाया जाता है। मंत्र - शास्त्र या मंत्र - चिकित्सा को सर्वोपरि स्थान चिकित्सा - विद्या मे दिया जाता है । इस कला की प्रशंसा करते हुए लिखा गया है कि सबसे सिद्ध वैद्य मात्रिक होता है । "सिद्धवैद्यस्तु मात्रिकः । "
तात्विक दृष्टि से विचार किया जाय तो व्याधि या रोग दो प्रकार के हो सकते है । एक वे जिनका सम्बन्ध शरीर से हो, दूसरे वे जिनका सम्बन्ध मन से हो । शरीर में होनेवाले रोगो को व्याधि तथा मन मे होने वाले रोगो को आधि की मज्ञा दी जाती है । यद्यपि व्याधि और आधि के रूपो मे पर्याप्त भेद होता है तथापि वे पूर्णतया स्वतन्त्र नही है बल्कि परस्पर में अनुस्यूत है | शरीरगत व्याधियों के प्रभाव मन के ऊपर और मन मे होने वाले रोगो-आधियो का प्रभाव शरीर के ऊपर पडता है । कई वार तो ये आपस मे मिलकर ऐसा रूप धारण करते हैं कि उनका पार्थक्य करना भी कठिन हो जाता है ।
उत्पादक हेतुओ को दृष्टि से विचार किया जावे तो व्याधि या शरीरगत व्याधियों के उत्पन्न करने मे वात-पित्त-कफ दोप भाग लेते हैं और उनके परिणाम स्वरूप शरीरगत धातुओ में वैकारिक परिवर्तन होते ( Pathological changes ) हैं और उनके कारण विविध लक्षण पैदा होते हैं । परन्तु मनोगत व्याधियों मे रज और तम दो दोप उत्पादक हेतु बनते है और इनके परिणाम स्वरूप शरीरगत धातुओ मे वैकारिक परिवर्तन (No signs of Patholohgical changes in Body tissues ) के कोई चिह्न नही मिलते है फिर भी विविध प्रकार के लक्षण पैदा होते है । सम्भव है उनकी उत्पत्ति मे मस्तिष्क धातु मे कुछ वैकारिक परिवर्तन होते हो ।
अब चिकित्सा या उपचार पर विचार करें तो व्याधि की चिकित्सा मे युक्तिव्यपाश्रय ( Materialistic ) साधन बतलाये जाते है और आधियो की चिकित्सा प्राय आधिदैविक या दैवव्यपाश्रय चिकित्सा का प्रसंग आता है ।
आधियो का विचार किया जाय तो उनमे कुछ मद, मूर्च्छा, सन्यास, अपस्मार, उन्माद और अपतत्रक प्रभृति ऐसी व्याधियाँ है जिनका आधिभौतिक या युक्ति