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चतुर्थ खण्ड : नबॉ अध्याय
३०३ जा सकता है । जब तक वमन बद न हो जावे जल्दी जल्दी दे । जव वमन बद हो जावे तो ३, ३ घटे के अतर से दे ।
संजीवनीवटी'-विडङ्ग, शुठी, मरिच, हरीतकी, चित्रक, विभीतक, वचा, गुडूची, भल्लातक (शुद्ध), शुद्ध वत्सनाभ-समभाग मे लेकर गोमूत्र मे पीसकर एक-एक रत्ती की गोलियां बना ले । अनुपान अदरक का रस या केवल जल । मात्रा अजीर्ण युक्त मे एक गोली, विसूचिका मे दो-दो गोली, सर्प काटे गी मे तीन-तीन और सन्निपात के रोगियो मे चार-चार गोलियो को एक साथ देवे । अतिसार एव छदि के अधिकार में पठित योगो का प्रयोग भी वमन की शान्ति के लिये करना चाहिये।
भेपज-१ अपामार्ग मूलको जल मे पीसकर उसका स्वरस पिलाना । २ करेले की पत्ती का या फल का रस उसमे तिलतैल मिलाकर पिलाना ३ छोटी मूली का रस और पिप्पली चूर्ण २ रत्ती को मिलाकर पिलाना ।
३ पाथरचूर-पापाण भेद-जिसको स्थानिक भाषा मे जेवायन पत्ता कहते है और वगदेशीय भाषा मे पाथरचूर कहते है। इसका पत्र-स्वरस १ चम्मच पन्द्रह-पन्द्रह मिनट के अतर से देने पर वमन रुक जाता है । यह औपाध विसूचिका मे बडी लाभ-प्रद होती है। यह एक सिद्ध भेषज है जिसका प्रयोग दृष्टफल है।
४ पलाण्डु-प्याज को कूचकर स्वरस निकाल कर पिलाने से भी विसूचिका की प्रारभिक अवस्था मे लाभ होता है।
५. आम्रास्थिक्काथ-आमकी गुठली की मज्जा और विल्व फल को मज्जा का काढा मधु-मिश्री मिला कर पीना वड़ा लाभप्रद पाया गया है। इससे वमन एव अतिसार दोनो का शीघ्र शमन होता है। कुछ अन्य सिद्ध फलयोग
अकवटी-मदार के जडकी छाल छाया-शुष्क, कालीमिर्च, सेधानमक, समभाग चूर्ण नीबू के रस मे चना के बरावर बनी गोलियाँ । इसको एक-एक घटे पर देने से लाभ होता है । ( चि आ.)
विसूचीभञ्जन वटी, (सि भे, म मा )-काली मिर्च, नीबू के वीज, भुनी छोटो हरड, जहरमोहरा खताई, दरियायी नारियल, मदार के जडकी
२. एकामजीर्णयुक्तस्य द्व विसूच्या प्रदापयेत् । तिस्रो भुजगदष्टस्य चतस्र सन्निपातिन ॥ सजीवनी वटी ( गुटिका जीवनी) नाम्ना संजीवयति मानवम् ॥
(शा. स.)