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द्वितीय अध्याय मे वर्तमान व्याधि का निर्णय करने के लिए पूर्वरूपो का स्मरण व्याधि के बोध मे कारण हो रहा है । अत पूर्वरूप केवल भावि व्याधि का ही नहीं अपितु वर्तमान व्याधि का भी ज्ञापक हुआ?
इम गका के निवारणार्थ इतना ही जानना पर्याप्त है-कि वर्तमान व्यावि के जन्म से पूर्व पूर्वत्प की उत्पत्ति हुई या नहीं? यदि हुई तो व्याधि के जन्म के पूर्व काल में ही ज्ञान होने की वजह से पूर्वस्प भविष्यत्-कालीन व्याधि का ही वोधक होगा । यदि व्याधि की उत्पत्ति से पूर्व, पूर्वरूप की उत्पत्ति नही हुई है तो अनुभव के अभाव में उसका स्मरण ही नही हो सकता । योग दर्शन में भी लिखा है कि 'अनुभूतविपयामम्प्रमोपः स्मृति' अर्थात् अनुभूत विषय का मस्तिष्क मे यथास्थिति रहना ही स्मरण मे हेतु है। जिस वस्तु की उत्पत्ति नही या जिनका अनुभव ही नहीं उसका स्मरण या स्मृति भी सभव नही है । सभव है प्रारभ में दांतो का मैलापन आदि उत्पन्न हुए हो और उस समय प्रमादवग उनको प्रमेह का पूर्वस्प न समझा गया अब व्याधि उत्पन्न हो जाने पर उनका स्मरण करते है और वह प्रमेह विशेप का ज्ञान करा सकता है। अत. पूर्वत्प भावी व्यावि का बोधक होता है । वस्तुत यहाँ पर पूर्वरूप का स्मरण व्याधि के ज्ञान मे कारण है पूर्वरूप नही, उसकी तो रूपावस्था मे सत्ता हो नही रहती। चूंकि स्मरण मिथ्या भी हो सकता है इसलिए स्मरण को प्रमाण मानना ठीक नही । शका तो ठीक है परन्तु व्यावि जन्म के पूर्व उत्पन्न पूर्वरुप जिसका अब स्मरण किया जाता है, वही भावी व्याधि का बोधक होता है न कि केवल स्मरण । क्योकि अनुभव से सस्कार, सस्कार से स्मृति और स्मृति को महायता से पूर्वरूप ही वर्तमान व्याधि का बोधक होता है। केवल स्मरण नही, स्मरण तो सहायक मात्र होता है । आप्तोपदेश को भी स्मरण के सदृश ही समझना चाहिए । अर्थात् आप्तोपदेश से भी रोग के पूर्वरूप एव रूप का ज्ञान होता है । इस प्रकार आप्तोपदेश को भी पूर्वस्पत्व प्रसग होगा क्योकि वह भी स्मरण की भांति ही रूप या पूर्वरूप के ज्ञान मे सहायक होता है । अस्तु उसमे पूर्वरूप के लक्षणो की अतिव्याप्ति न हो इसीलिये लिङ्ग पद से पूर्वरूप का वर्णन किया गया है 'लिङ्गमव्यक्तमल्पत्वाद् व्याधोना तद्ययायथम्' । विशिष्ट व्याधि के विशिष्ट लक्षणो को ही लिङ्ग कहते है, आप्तोपदेश व्याधि का सामान्य ज्ञापक होता है अत उसे लिङ्ग नही कह सकते। इस प्रकार पूर्वरूप अविद्यमान व्याधि का असाधारण लक्षण ( लिङ्ग) होता है।
इसकी उपमा विशिष्ट मेघ से दी गई है। जिससे विशिष्ट वर्षा की उत्पत्ति ४ भि०सि०