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__ चतुर्थ खण्ड : सप्तम अध्याय
२५१ ६ कलिङ्गादि गुटिका-इन्द्रजव, नीम की छाल, बेल के फल की गूदी, नाम की गुठली, पंथ का गूदा, रसाञ्जन, लाक्षा, हरिद्रा, दारुहरिद्रा, नेत्रवाला, कायफर, नोना पाठा, लोय, मोचरस, शख भस्म, धाय का पुष्प, वटाकर इन द्रव्यों को मम परिमाण में लेकर तण्डुलोदक ने पीस कर ३ माशे को गुटिका बना कर छाया में सुखाकर रख ले। जल से १-१ गोली दिन मे तीन वार या चार बार दे तो ज्वरातिसार तथा रक्तस्राव मे लाभप्रद होता है।
रसयोग चिकित्सा-सिद्ध प्राणेश्वर रम -शुद्ध गधक ४ भाग, पारद ४ भाग, अभ्रक भस्म ४ भाग, मजिक्षार १ भाग, शुद्ध टकण १ भाग, यवक्षार, १ भाग, मैन्धव लवण १ भाग, रुचक लवण १ भाग, विड्लवण १ भाग, मौद्भिद लवण १ भाग, सामुद्रलवण १ भाग, हरीतकी, विभीतक, आमलकी, शठो, मरिच, पिप्पली, श्वेत जीरा, स्याह जीरा, चित्रक को जड, यमानी, घृतभजित होग, वायविडङ्ग, विजैसार और सौफ मे से प्रत्येक एक एक भाग। मात्रा४ रत्ती ने १ मागे । अनुपान--पान के रस के साथ ।।
कनकसुन्दर रस-हिंगुल, मरिच, गधक, टकण, पिप्पलो, वत्सनाभ ।
धतुर का वीज-समपरिमाण मे लेकर विजया-स्वरस मे भावित कर २ रत्ती को गोली निर्माण करे । अनुपान-भृष्ट जीरक + मधु ।
आनन्दभैरव रस-शुद्ध हिंगुल, वत्सनाभ, सोठ, मरिच, पिप्पली, शुद्ध टकण, गवक। इन्हें मम भाग ले । प्रथम हिगुल एव गधक की कज्जलो बनाकर शेप द्रव्यों को मिला दे । जम्बीरी नीबू के रस से भावित कर १-२ रत्ती की गोली बना ले। छाया में सुखाकर शीशी मे रख ले। अनुपान-अदरक के रस और मधु से या भुनाजोरा के चूर्ण और मधु मे।
वरातिसार मे उपवास करना अधिक उत्तम रहता है तथापि पाचनार्थ एव पोपणार्थ पथ्य-पूर्वकथित पेया का उपयोग करे। वार्लीवाटर नमकीन बनाकर नीव का रन डाल कर पिलावे । अनार या बेदाने का रस पिलावे । बकरी का दूध पीन को दे।
सप्तम अध्याय
अतिसार प्रतिषेध अग्निमाद्य होने से बढे हुए द्रव धातु से युक्त मल वायु से प्रेरित होकर जब गदामार्ग से वार वार निकलता है तो उसे अतिसार कहते है। यह कारण