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भिपकर्म-सिद्धि
भेद ने वातिक, पैत्तिक, श्लेष्मज, त्रिोपज, शोकज और आमज छ प्रकार का होता है ।
क्रियाक्रम - अतिसार को चिकित्सा में सर्वप्रथम विचार यह करना होता है कि इसमें आमदोष युक्त है या पत्र | अस्तु चिकित्सक के लिए दोनो प्रकार के लक्षण एव चिह्नों मे अवगत होना बावश्यक होता है क्योकि दोनो अवस्थाओं में क्रियाक्रम का पर्याप्त भेद करना पड़ता है । उमे, नामातिमार की अवस्था में स्तंभन या ग्राही योगों को नहीं दिया जाता है, केवल लंग्न और पाचन प्रमृति उपचारी से ठीक करना पडता है, परन्तु पक्वातिमार की अवस्था मे रोगों में नग्राही अपवि का योग आवश्यक हो जाता है । अतएव सर्वप्रथम नाम और पत्र की जानकारी यावस्यक हो जाती है |
नाम और पत्र शब्द एक पारिभाषिक अर्थ में शास्त्र व्यवहृत होता है | अतिनार में आमावस्था अतस्यविप ( Internal toxins ) के अर्थ में और पावस्या निर्गत तस्य विप के अर्थ में प्रयुक्त होता है । तथापि आम और निराम के विनिश्चय के लिये कुछ लक्षण तथा चिह्न निर्धारित हैं । जैसे—
मल का भेद - १ बामटोप युक्त डालने मे डूब जाती हैं तथा पक्त्रातिमार परिपक्व होने की वजह से लघु होने
के
अतिसार में आम तथा पक्क विष्ठा गुरु होने के कारण जल में या पक्व मल युक्त अतिनार में मल से जल में डालने से उसपर तैरती है । परन्तु कई बार आम दोप युक्त मल में भी जलीयाग अधिक होने से वह जल में मिलकर तैरता है और पत्र मल अधिक कफ युक्त, शीत, और घना होने के कारण पानी में डूब जाता है। इस परीक्षा कर लेनी चाहिये | जैन२ अतिसार की आमावस्या में जो पुरीप निकलता है उसमें अत्यन्त दुर्गन्ध होती है, उदर में आटोप ( गुड गुड शव्द होता है, पेट फूला आध्मान युक्त ) रहता है, पेट में अति (सुई चुभोने जैमी बेदना ), हल्लास और कफ का मुख से नात्र प्रभृति लक्षण मिलते है । इन लक्षणों के अभाव में या विपरीत लक्षणों की उपस्थिति में निरामता या पक्वता समझनी चाहिये ।"
लिये लक्षण के अनुसार भी याम-पत्र की
१ आमपत्रत्रक्रम हित्वा नातिमा क्रिया यत । यत. सर्वातिसारेषु ज्ञेयं पक्वामलक्षणम् ॥| मज्जत्यामं गुन्वाविट पक्वा तुल्लवते जले । विनातिद्रवसंघानीत्यश्लेश्मप्रदूपणात् ॥ चनुद् दुर्गन्धि माटोपविष्टंभातिप्रमेनि । विपरीतं निरामं तु कफात् पक्वं च मज्जति ॥