Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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प्राचीन चरित्रकोश
अग्निप्वात्त
अग्निपुत्रो के संख्या के बारे में और भी प्रकार दिये है | पांचों गन्धर्वकन्याओं से विवाह किया तथा पितासमवेत (मत्स्य. ५१)। परंतु वस्तुतः यह अग्नि का वंश न होकर अलकापुरी में रहने लगा (पन. उ. १२८-१२९)। स्वयं अग्नि के विभिन्न स्वरूप है (वैश्वानर देखिये)। अग्निबाह--भौत्य मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक । ऋग्वेदके एक सूक्त का दृष्टा अनि बताया गया है (ऋ. |
२. भौत्य मनु का पुत्र । १०.१२४) (मांधातृ और नीलध्वज देखिये)।
३. स्वायंभुव मनु का पुत्र । ७. आगे होने वाले इन्द्रसावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों
'अग्निभाव--अमिताभ देवगणों में से एक । में से एक।
अग्निभू काश्यप-इन्द्रभू काश्यप का शिष्य (वं. ब्रा. अग्नि-और्व-यह भार्गव था (ऋचीक तथा और्व |
अग्निमाठर-बाष्कल का शिष्य । बाष्कल ने इसको देखिये)।
ऋग्वेद की एक संहिता सिखाई । भागवत के अनुसार आग्न गृहपात सहस्पुत्र-सूक्तद्रष्टा (ऋ. ८.१०२) अग्निमित्र तथा ब्रह्माण्ड के अनुसार अग्निमातर पाठभेद है।
अग्नि चाक्षुष्--सूक्तद्रष्टा (ऋ. ९. १०६. १-३; (व्यास देखिये) १.-१४)।
अग्निमातर-(अग्निमाठर देखिये)। - भग्नि तापस--सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.१४१)।
अग्निमित्र-स्वायंभुव मनु का पुत्र । अग्नि धिष्ण्य ऐश्वर-सूक्तद्रष्टा (ऋ. ९. १०९)।। २. अग्निमाठर देखिये अग्नि पावक-सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.१४०)। । ३. शंगराजाओं का प्रथम राजा । यह मार्यराजाओं का अग्नि पावक बार्हस्पत्य-सूक्तद्रष्टा (ऋ. ८.१०२)। | अन्तिम राजा बृहद्रथ के बाद, सिंहासन पर बैठा (शुग अग्नि यविष्ट सहःपुत्र-सूक्तद्रष्टा (ऋ. ८.१०२)। | देखिये )। अग्नि वैश्वानर-सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.७९-८०)। अग्नियुत स्थौर - (अग्नियूप देखिये)। इसने सरस्वती नदी से पुरु और उत्तर पांचाल देश | अग्नियप स्थौर-यह एक सूक्त का द्रष्टा है । अग्नियुत जला दिया (श. बा. १.४.१०-१९)। यह, वैदिक धर्म | पाठभेद भी है (ऋ. १०.११६ )। का प्रसार कैसा हुआ, इसका प्रतीकात्मक वर्णन होगा। | अग्निवर्चस-व्यास के पुराण शिष्यपरंपरा का शिष्य । - अग्नि-शर्मायण-कश्यप गोत्री ऋषिगण । | विष्णु, ब्रह्मांड तथा वायु के मत से रोमहर्षण का शिष्य । . अग्नि सौचिक-सूक्तद्रष्टा (ऋ.१०.५१.२,४,६,८, अग्निवर्ण-(सू. इ.) सुदर्शन राजा का पुत्र । : ५२,५३.४-९-७-९०)।
अग्निवेश-शिवावतार शूलिन् का शिष्य । मग्निकेतु-रावणपक्षीय राक्षस | राम के द्वारा अग्निवेश्य-अंगिरागोत्री ऋषि । ::युद्ध में यह मारा गया (वा. रा. यु. ४३.२९)। २. (सू. नरिष्यन्त.) देवदत्त का पुत्र । इसे जातुकर्ण्य अग्निजिव्ह-अंगिरागोत्री ऋषि ।
तथा कानीन ऐसे नामान्तर है। यह तपद्वारा ब्राहाण बना मग्नितेज-धर्मसावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से | था। इस कारण, इसके द्वारा उत्पन्न संतति को, अग्निएक।
| वेश्यायन नाम प्राप्त हुआ (भा. ९. २. २३)। अग्निप-वेदनिधि नामक ब्राह्मण का पुत्र । एक बार | ३. अगस्त्य ऋषी का एक शिष्य (म. आ.१२२.२४)। प्रमोदिनी, सुशीला, सुस्वरा, सुतारा तथा चन्द्रिका नामक | द्रुपद तथा द्रोणाचार्य ने इसके पास से धनुर्वेद की गंधर्वकन्या इसपर मोहित हो कर, उन्होंने इसे अपने | शिक्षा तथा ब्रह्माशिर अस्त्र प्राप्त किया। यह पांडवों साथ विवाह करने के लिये कहा। परंतु ब्रह्मचारी होने | के समागम में कुछ काल तक द्वैतवन में था। यह के कारण इसने यह अमान्य किया। अन्त में क्रोधित | द्रोणाचार्य का पितृव्य तथा भारद्वाज का छोटा भाई (म. हो कर इन्होंने परस्पर को पिशाच होने का शाप दिया। | आ. १२२. २४)। बाद में, इसके पिता ने इसकी मुक्ति के लिये लोमश मुनि | अग्निस्टत् अथवा अग्निष्टोम-चक्षुर्मनु का नड्वला की प्रार्थना की। तब लोमश के कथनानुसार, सब | से प्राप्त पुत्र । पिशाच्चों ने (छैः) प्रयागतीर्थ में स्नान करने से पूर्वयोनि | अग्निष्वात्त-एक पितृगण । ब्रह्मदेव अपनी मानसप्राप्त की। अन्त में लोमश की आज्ञानुसार, इसने उन | कन्या सन्ध्या को देख कर काममोहित हुए। उस समय