Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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अग्नि
प्राचीन चरित्रकोश
अग्नि
प्राचीन काल में श्वेतकी ने अपरिमित यज्ञ किये। लौटने पर चुगली करने के कारण अग्नि को शाप दिया कि उसके द्वारा किये गये यज्ञसत्र में, बारह वर्षों तक, अग्नि | 'तुम सर्वभक्षक बनोगे। इसपर अमि ने उःशाप मांगा। लगातार हविर्द्रव्य भक्षण कर रहा था । इस कारण इसमें | तब भृगु ने 'सर्वभक्षक होते हुए भी तुम पवित्र ही रहोगे' स्थूलता उत्पन्न हो कर, उसपर उपाय पूछने के लिये यह ऐसा उःशाप दिया (पद्म. पा. १४)। भृगु स्नान करने ब्रह्मदेव के पास गया । तब ब्रह्मदेव ने इसे खांडववन का बाहर गया, यह देख कर उसके आश्रम में, पुलोमा नामक भक्षण करने के लिये कहा। इसलिये इसने उसे जलाना राक्षस प्रविष्ट हुआ तथा उसने अग्नि से पूछा कि, भृगुपत्नी प्रारंभ किया परन्तु इन्द्र ने लगातार पर्जन्यवृष्टि कर के पुलोमा को मैंने पहले मन से वरण किया यह सत्य है या सात बार इसका पराभव किया। अन्त में निराश हो कर असत्य । अग्नि ने बताया कि, यह सत्य है, इसलिये भृगु ने यह पुनः ब्रह्मदेव के पास गया तथा सारा वृत्तान्त उन्हे | उसे उपरोक्त शाप दिया (म. आ. ५-७)। भृगु के निवेदित किया। तब भूलोक में जा कर कृष्णार्जुन से | इस शाप के कारण अग्नि जल में गुप्त हो गया। इससे देवखांडववन मांगने की सलाह ब्रह्मदेव ने इसको दी। यह देवताओं के यज्ञयागकर्म बंद हो गये। देवताओं द्वारा ब्राह्मणरूप से कृष्णार्जुन के पास आया तथा इसने भक्षण | इसका शोध होने पर मत्स्यों ने अग्नि दर्शाया । तब देवताओं करने के लिये वह वन मांगा। तब अर्जुन ने कहा कि, ने इसकी स्तुति की जाने पर, यह बाहर आया तथा हमारे पास युद्धसामग्री की न्यूनता है, वह अगर तुमने पूर्ववत् अपना कार्य करने लगा (म. आ. ७; श. २७, हमें दी तो हम इंद्र से तुम्हारी रक्षा करेंगे। अग्नि ने | व. २२४)। वरुण के पास से, श्वेतवर्णीय अश्वों से जुता हुआ तथा ऋग्वेद में अग्नि के गुप्त होने का यह कारण बताया है। कपिध्वजयुक्त एक दिव्य रथ, गांडीव नामक धनुष तथा वषट्काररूप वज्र से बांधवों की मृत्यु होने के कारण, दो अक्षय तूणीर मांग कर, अर्जुन को दिये तथा श्रीकृष्ण सौचीक नामक अग्नि, वषट्कार तथा हवि उठा ले जाने को सुदर्शन चक्र तथा कौमोदकी नामक गदा दी। इससे वे | में डर गया तथा देवताओ से निकल कर जल में भाग दोनों संतुष्ट हुए तथा उन्होंने अग्नि के संरक्षण का वचन गया (ऋ. १०.५१)। यहाँ अग्नि-देव संवाद है। दे कर, उसे खांडववन का भक्षण करने के लिये कहा । तब ब्राह्मणों के श्रेष्ठत्व के संबंध में, अग्नी का इन्द्रं से संवाद अग्नि उस वन का भक्षण करने लगा। यह समाचार हुआ था (म..अनु. १४)। उसी प्रकार गाय, ब्राह्मण इन्द्र को मिलते ही, वह अमि का निवारण करने के लिये, तथा अग्नि को पादस्पर्श करने वाले पर भयंकर आपत्ति वहाँ आ कर पर्जन्यवृष्टि करने लगा। परंतु कृष्णार्जुन ने | आती है इस अर्थ का धर्मकथन इसने किया है (म. उसका पराभव किया। पंद्रह दिनों तक खांडववन का अनु. १२६)। आतृत भक्षण करन क बाद, आम का स्थूलता नष्ट हुई। सीता को लंका से लाने के बाद, जब राम उसका स्वीकार इस वन से तक्षकपुत्र अश्वसेन, मयासुर तथा महर्षि मन्दपाल
नहीं कर रहा था, तब अग्नी ने बताया कि, सीता निरपराध के चार पुत्र शार्ङ्गक पक्षी केवल बचे (म. आ. २१७. है- २०२७), १८)। इक्कीस दिन तक, अग्नि लगातार वह बन दग्ध | इसे स्वाहा नामक पत्नी से स्कन्द नामक पुत्र उत्पन्न हुआ कर रहा था (म. आ. २२५. १५)।
| (म. व. २१४)। इसके अलावा, इसी पत्नी से पावक, वृत्र को मारने के बाद, ब्रह्महत्या के भय से भागे हुए पवमान व शुचि नामक तीन पुत्रों ने जन्म लिया (भा.४. इन्द्र की खोज, बृहस्पति के कहने से इसने की (म. उ.. १.६०-६१)। सुदर्शना नामक पत्नी से इसे सुदर्शन १५.१६ )। आगे चल कर उस ब्रह्महत्या से इन्द्र का | नामक पुत्र हुआ (म. अनु. २. ३७)। इसके सिवा, छूटकारा करने के लिये ब्रह्मदेव ने उसके चार भाग | स्वारोचिष नामक इसके पुत्र का उल्लेख पाया जाता है किये। उसका चौथा भाग अग्नि ने ग्रहण किया (म. (भा. ८. १. १९; आप देखिये)। शा. २७३)।
___ अंगिरा की मांग के अनुसार, अग्नी ने उसे बृहस्पति ___ एक बार जब भृगु समिधा लाने के लिये वन में गया था, | नामक पुत्र दिया। अंगिरा की पत्नी तारा । इसी से अग्नितब दमन नामक राक्षस उसके तथा उसकी पत्नी के बारे | वंश की वृद्धि हुई (म. व. २०७-२१२)। पावक, में पूछताछ करने लगा। तब भयभीत हो कर अग्नि ने चुगली | पवमान तथा शुचि इन अग्निपुत्रों से कुल ४९ अनि उत्पन्न की तथा भृगुपत्नी का पता बता दिया। भृगु ने | हुए (भा. ४.१.६०-६१; वायु. २९; ब्रह्मांड २-५३)।