________________
अंग बाह्य- अंग बाह्य बिना प्रश्न किये तीर्थंकरों द्वारा प्रतिपादित होता है व स्थविरकृत होता है।
समवायांगसूत्र और अनुयोगद्वारसूत्र में तो केवल द्वादशांगी का ही निरूपण है, किन्तु नंदीसूत्र में अंगप्रविष्ट के साथ अंगबाह्य के भेदों का विस्तार किया गया
(ग) अनुयोग - अनुयोगों की दृष्टि से आर्यरक्षित ने सभी आगम ग्रंथों को चार
भागों में विभक्त किया है1. चरणकरणानुयोग - कालिकश्रुत, महाकल्प, छेदश्रुत आदि 2. धर्मकथानुयोग - ऋषिभाषित, उत्तराध्ययन आदि। 3. गणितानुयोग
सूर्यप्रज्ञप्ति आदि 4. द्रव्यानुयोग - दृष्टिवाद आदि
दिगम्बर परम्परा आगमों का लोप मानती है। अतः दिगम्बर साहित्य में इन चार अनुयोगों का वर्णन कुछ रूपान्तर से मिलता है।
1. प्रथमानुयोग - महापुराण व अन्य पुराण 2. करणानुयोग - त्रिलोकप्रज्ञप्ति, त्रिलोकसार आदि 3. चरणानुयोग - मूलाचार आदि
4. द्रव्यानुयोग - प्रवचनसार, गोम्मटसार आदि (घ) आगमों का सबसे उत्तरवर्ती वर्गीकरण अंग, उपांग, मूल व छेद के रूप में
प्रभावकचरित' में मिलता है। यह वि. संवत् 1334 की रचना है। इसी
वर्गीकरण के आधार पर आगम साहित्य का मूल्यांकन विद्वानों ने किया है। वभिन्न जैन-सम्प्रदायों में मान्य आगम
वर्तमान में जैन धर्म के प्रमुख चार सम्प्रदाय हैं- श्वेतारम्बरमूर्तिपूजक, पानकवासी, तेरापन्थ एवं दिगम्बर। श्वेताम्बरमूर्तिपूजक सम्प्रदाय में 45 आगम
न्य हैं। स्थानकवासी एवं तेरापंथ सम्प्रदाय 32 आगमों को मान्यता देते हैं। दगम्बर सम्प्रदाय के अनुसार पूर्वधर आचार्यों द्वारा रचित षटखण्डागम, कषायपाहुड़ आदि ग्रंथ ही आगम हैं। इन सभी सम्प्रदायों में मान्य आगम ग्रंथों का उल्लेख विभिन्न आचार्यों एवं विद्वानों ने अपने ग्रंथों में किया है। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय में मान्य 45 आगम
इस सम्प्रदाय में सम्मिलित खरतरगच्छ, तपागच्छ आदि सभी उपसम्प्रदायों में 45 आगम मान्य हैं। इन 45 आगमों में 11 अंग, 12 उपांग, 10 प्रकीर्णक, 6
तीर्थंकर व आगम-परम्परा
13