Book Title: Bhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Author(s): Tara Daga
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 286
________________ 18. व्या. सू., 25.7.191-193 19. वही, 10.2.7-8 20. व्या. सू., (भाग-4), प्रस्तावना, पृ. 42 स्थानांग, मुनि मधुकर, 10.72, पृ. 709 22. व्या. सू., 25.7.195 उत्तराध्ययन, अध्ययन 26 व्या. सू., 25.7.195 तत्त्वार्थसूत्र, 9.22 दशवैकालिकवृत्ति, 1.3 स्थानांग, मुनि मधुकर, 10.16, पृ. 695 समवायांग, समवाय, 10 णाणं च दसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा। __ एस मग्गो त्ति पन्नत्तो जिणेहिं वरदंसिहिं ।। - (28.2) 30. व्या. सू., 2.1, 1.9,9.33 31. व्या. सू., 2.5.24 32. व्या. सू., (भाग-4), प्रस्तावना, पृ. 42 33. आवश्यकमलयगिरिवृत्ति (खण्ड-2), अध्ययन 1 व्या. सू., 16.4.7 35. वही, 25.7.196-255 36. वही, 16.4.2-7 37. वही, 1.9.18 38. वही, 8.6.1 39. 'राजगिहे नगरे उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाइं घरसमुदाणस्स भिक्खायरियं अडति' व्या. सू., 2.5.23 40. दशवैकालिक, मुनि, मधुकर, 5.84, पृ. 151 व्या. सू., 7.1.20 'समुयाणं उंछमेसिज्जा जहासुत्तमणिन्दिं लाभालाभ संतुढे पिण्डवायं चरे मुणी'- उत्तराध्ययन, 35.16 व्या. सू., 9.11.43 वही,7.1.17-21 45. वही, 8.6.4-6 46. वही, 1.9.26-27 47. वही, 5.6.15-18 48. व्या. सू., 9.33.92 49. 'बिलमिव पन्नगभूएणं अप्पाणेणं आहारमाहारेति........,' वही, 7.1.20 260 भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन

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