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चतुर्विधआहारत्यागपौषध - चतुर्विध आहार त्याग कर शंख श्रावक द्वारा एकान्तिक पौषध किया गया। इस पौषध का स्वरूप ग्रंथ में इस प्रकार विवेचित है- 'शंख श्रावक ब्रह्मचर्यपूर्वक, मणि, सुवर्ण, माला, वर्णक, विलेपन, शस्त्र, मूसल आदि का त्याग कर अपनी पौषधशाला में आकर अकेले ही धर्मजागरण का विचार करता है । फिर पत्नी उत्पला को पूछकर पौषधशाला में आकर पौषधशाला का प्रमार्जन (सफाई) करता है, उच्चारण- प्रस्त्रवण (मलमूत्र विसर्जन) की भूमि की प्रतिलेखना करने के पश्चात् डाभ का संस्तारक ( बिछौना) बिछाकर उस पर बैठकर तथारूप पाक्षिकपौषध का पालन करते हुए अहोरात्र बिताता है । दूसरे दिन सूर्योदय होने पर पौषधशाला से निकलकर पैदल चलकर भगवान् महावीर को वन्दन कर उनकी पर्युपासना करता है । इस पौषध के फलस्वरूप उसने सुदर्शन नामक जागरिका जागृत की 150
शंख श्रावक द्वारा किये गये पौषध में आवश्यकवृत्ति में दिये गये पौषध के चारों प्रकारों का समावेश हो जाता है। शंख श्रावक द्वारा चतुर्विध आहार, विलेपन, अस्त्र-शस्त्र आदि का त्याग कर ब्रह्मचर्यपूर्वक यह पौषध किया गया। पौषध की तिथियाँ
भगवतीसूत्र में चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या और पूर्णिमा इन पर्वतिथियों में श्रमणोपासकों द्वारा प्रतिपूर्ण पौषध के सम्यक् पालन का उल्लेख हुआ है। उपासकदशांगसूत्र” में अभयदेवसूरि ने द्वितीया, पंचमी, अष्टमी, एकादशी तथा चतुर्दशी को पर्वतिथियाँ माना है । योगशास्त्र और तत्त्वार्थभाष्य में अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णिमा तथा अमावस्या पर्वतिथियाँ मानी गई हैं । इन तिथियों के दिनों में पौषव्रत का पालन विशेष रूप से किया जाता है ।
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अतिचार
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उपासकदशांग” में पौषध के पाँच अतिचारों का वर्णन है 1. अप्रतिलेखित - दुष्प्रतिलेखित शय्या संस्तार 2. अप्रमार्जित - दुष्प्रमार्जित - शय्यासंस्तार
3. अप्रतिलेखित - दुष्प्रतिलेखित उच्चारप्रस्रवणभूमि 4. अप्रमार्जित दुष्प्रमार्जित उच्चारप्रस्रवण भूमि
5. पौषध - सम्यकननुपालन
भगवतीसूत्र में शंख श्रावक द्वारा इन पाँचों अतिचार का त्याग करते हुए विधिपूर्वक पौषध किया गया। पौषधशाला में आकर विधिपूर्वक पौषधशाला का
श्रावकाचार
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