Book Title: Bhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Author(s): Tara Daga
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 321
________________ 20. 21. 22. 23. 24. 25. 26. 27. 28. 29. 30. 31. 32. 33. 34. 35. 36. 37. 38. 39. 40. 41. 42. 43. 44. 45. 46. 47. 48. 49. 50. 51. 52. व्या. सू., 6.3.14 'ईश्वरः कारणम् - पुरुषकर्माऽऽफल्यदर्शनात्' - न्यायदर्शन, 4.19 व्या. सू., 12.5.37 वही, 5.6.20 उत्तराध्ययन, 20.37 जैन दर्शन स्वरूप और विश्लेषण, पृ. 457 व्या. सू., 7.10.16, 18 'सुच्चिणाकम्मा सुच्चिणाफला भवन्ति.. (क) समवायांग, समवाय, 5 समवायांग, समवाय, 2 दुविहे बंधे पन्नत्ते.. वही, 16.1.20, 6.3.5 वही, 25.1.8 वही, 6.3.5 वही, 6.3.7 ख) स्थानांग, सम्पा. मुनि मधुकर, 5.109, पृ. 488 (ग) तत्त्वार्थसूत्र, 8.1 भगवतीवृत्ति, अभयदेव पत्रांक, 56-57 व्या. सू., 7.1.6, 16, 10.2.3 वही, 12.1.26 - 28, 1.1.11 वही, 1.9.18-19 वही, 5.4.7, 12 वही, 7.6.16, 24, 28 व्या. सू., 3.3.2 वही, 1.6.7 व्या. सू., 1.1.6, 6.10.12 कर्मग्रंथ (भाग-5), गा. 96 भगवतीवृत्ति, अभयदेव पत्रांक, 65 व्या. सू., 6.10.11 वही, 1.1.6 भगवई (खण्ड-1) '_ - कर्म सिद्धान्त व्या. सू., 8.8.10 दशाश्रुतस्कन्ध, 6 सम्पा. आचार्य महाप्रज्ञ, पृ. 26-27 व्या. सू., 1.1.11 वही, 25.8.4 'मायी पमायी पुणरेति गब्भं' - आचारांग, सम्पा. मुनि मधुकर, 1.3.1.108, पृ. 89 व्या. सू., 1.1.10 295

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