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व्या. सू., 6.3.14
'ईश्वरः कारणम् - पुरुषकर्माऽऽफल्यदर्शनात्' - न्यायदर्शन, 4.19
व्या. सू., 12.5.37
वही, 5.6.20
उत्तराध्ययन, 20.37
जैन दर्शन स्वरूप और विश्लेषण, पृ. 457
व्या. सू., 7.10.16, 18
'सुच्चिणाकम्मा सुच्चिणाफला भवन्ति..
(क) समवायांग, समवाय, 5
समवायांग, समवाय, 2 दुविहे बंधे पन्नत्ते..
वही, 16.1.20, 6.3.5
वही, 25.1.8
वही, 6.3.5
वही, 6.3.7
ख) स्थानांग, सम्पा. मुनि मधुकर, 5.109, पृ. 488 (ग) तत्त्वार्थसूत्र, 8.1
भगवतीवृत्ति, अभयदेव पत्रांक, 56-57
व्या. सू., 7.1.6, 16, 10.2.3
वही, 12.1.26 - 28, 1.1.11
वही, 1.9.18-19
वही, 5.4.7, 12
वही, 7.6.16, 24, 28
व्या. सू., 3.3.2
वही, 1.6.7
व्या. सू., 1.1.6, 6.10.12
कर्मग्रंथ (भाग-5), गा. 96
भगवतीवृत्ति, अभयदेव पत्रांक, 65
व्या. सू., 6.10.11
वही, 1.1.6
भगवई (खण्ड-1)
'_
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कर्म सिद्धान्त
व्या. सू., 8.8.10
दशाश्रुतस्कन्ध, 6
सम्पा. आचार्य महाप्रज्ञ, पृ. 26-27
व्या. सू., 1.1.11
वही, 25.8.4
'मायी पमायी पुणरेति गब्भं' - आचारांग, सम्पा. मुनि मधुकर, 1.3.1.108, पृ. 89
व्या. सू., 1.1.10
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