Book Title: Bhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Author(s): Tara Daga
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 300
________________ जागरिका' जागरिका का अर्थ है धर्म चिन्तन हेतु जागरण करना। यह आध्यात्मिक क्रिया श्रमणाचार एवं श्रावकाचार दोनों के अन्तर्गत आती है। भगवतीसूत्र में जागरिका के तीन भेद बताये गये हैं 1. बुद्ध-जागरिका, 2. अबुद्ध-जागरिका, 3. सुदर्शन-जागरिका बुद्ध-जागरिका- जो केवल ज्ञान-दर्शन के धारक, जिन, अरिहंत केवली, सर्वज्ञ सर्वदर्शी हैं, वे बुद्ध हैं तथा वे बुद्ध जागरिका करते हैं। अबुद्ध-जागरिका- जो पाँच समिति, तीन गुप्ति आदि से युक्त ब्रह्मचारी हैं, वे अबुद्ध-जागरिका करते हैं। सुदर्शन-जागरिका- जीव-अजीव तत्त्वों के ज्ञाता, सम्यग् दृष्टि श्रमणोपासक पौषध आदि में जो जागरिका करते हैं, वह प्रमाद, निद्रा आदि से रहित सुदर्शन जागरिका है। भगवतीसूत्र में उल्लेख है कि शंख श्रावक ने चतुर्विध आहारत्याग पौषध के फलस्वरूप सुदर्शन जागरिका जाग्रत की। संदर्भ 1. कोठारी सुभाष - उपासकदशांग और उसका श्रावकाचार, पृ. 72 2. व्या. सू., 2.5.11, 5.4.26 3. श्रावकप्रज्ञप्ति, गा. 2 4. स्थानांगसूत्र, मुनि मधुकर, 3.4.497, पृ. 188 समवायांग, मुनि मधुकर, 11.5 दशाश्रुतस्कंध, 6.1-2 7. तत्त्वार्थसूत्र, 7.1.5-17 (क) शास्त्री, देवेन्द्र मुनि-जैन आचार सिद्धान्त और स्वरूप (ख) महासती उज्जवल कंवर-श्रावकधर्म 9. वही, 12.1 10. 'दुवालसविहं सावगधम्म पडिवजइ'- वही, 18.10.28 11. वही, 11.12 12. वही, 18.7.26-37 व्या. सू., 18.2.3 वही, 12.1 15. वही, 12.2 16. वही, 2.5.11 17. विपाकसूत्र, मुनि मधुकर, श्रुतस्कन्ध-2, अध्ययन 1 सू. 6, पृ. 118 18. व्या. सू. 2.5.11 14. 274 भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन

Loading...

Page Navigation
1 ... 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340