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श्रमण निग्रंथ के भेद-प्रभेद६०
भगवतीसूत्र में श्रमण निग्रंथ के पाँच प्रमुख भेद किये गये हैं; 1. पुलाक, 2. बकुश, 3. कुशील, 4. निग्रंथ, 5. स्नातक। तत्त्वार्थसूत्र में भी श्रमण निग्रंथ के ये पाँच भेद बताये गये हैं- पुलाकबकुशुशील-निग्रंथस्नातका निग्रंथाः - (9.48)।
पुलाक- पुलाक का अर्थ है, सार रहित धान्य कण। जो साधु छोटे-छोटे दोषों के कारण संयम को किंचित्रूप से असार कर देता है, वह पुलाक कहलाता है। पुलाक के 5 प्रमुख भेद बताये हैं। 1. ज्ञानपुलाक, 2. दर्शनपुलाक, 3. चारित्रपुलाक, 4. लिंगपुलाक, 5. यथासूक्ष्मपुलाक।
बकुश- बकुश का अर्थ है, चितकबरा। जिसका संयम चितकबरा हो गया, वह बकुश कहलाता है। बकुश के पाँच भेद इस प्रकार हैं; 1. आभोगबकुश, 2. अनाभोगबकुश, 3. संवृतबकुश, 4. असंवृतबकुश, 5. यथासूक्ष्मबकुश
कुशील- जिसका चारित्र कुत्सित हो गया हो, वह श्रमण कुशील कहलाता है। इसके दो भेद हैं- 1. प्रतिसेवनाकुशील, 2. कषायकुशील
निग्रंथ- निग्रंथ के पाँच प्रकार इस प्रकार हैं- 1. प्रथम-समय-निग्रंथ, 2. अप्रथम-समय-निग्रंथ, 3. चरम-समय-निग्रंथ, 4. अचरम-समय-निग्रंथ, 5. यथासूक्ष्म-निग्रंथ
स्नातक- पूर्णतया शुद्ध अखण्ड एवं सुगन्धित चावल के समान शुद्ध अखण्ड चारित्र वाला निग्रंथ स्नातक कहलाता है। स्नातक के पाँच भेद इस प्रकार किये हैं; 1. अच्छवि, 2. असबल, 3. अकर्मांश, 4. संशुद्ध ज्ञान-दर्शनधर, 5.
अपरिस्रावी ___ग्रंथ में श्रमण निग्रंथ के पाँच प्रमुख भेद तथा उनके अवान्तर प्रभेद के पश्चात् इनके स्वरूप पर वेद, राग, कल्पचारित्र, प्रतिसेवना, ज्ञान आदि दृष्टियों से विचार किया गया है। संयत के भेद-प्रभेदन
जो सामायिक आदि पाँच चारित्रों का पालन करने वाला होता है, वह संयत कहलाता है। भगवतीसूत्र में संयत के 5 प्रकार बताये गये हैं;
1. सामायिकसंयत, 2. छेदोपस्थापनिक संयत, 3. परिहारविशुद्धिकसंयत, 4. सूक्ष्मसम्परायसंयत, 5. यथाख्यातसंयत।
इनके स्वरूप को भगवतीसूत्र में इस प्रकार स्पष्ट किया गया है
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भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन