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प्रत्याख्यान (त्याग-नियम), पौषधोपवास आदि का सम्यक् आचरण करते थे। श्रमणों को प्रासुक व एषणीय आहार, वस्त्रादि उपलब्ध कराते तथा अपनी शक्ति के अनुसार तपकर्म से आत्मा को भावित करते थे।' __इसी प्रसंग में श्रावक के पाँच अभिगमों का भी उल्लेख हुआ है। तुंगिकानगरी के श्रमणोपासक श्रमणों के निकट पहुँचने से पूर्व निम्न पाँच अभिगमों को धारण करते हैं।
1. फूल, ताम्बूल आदि सचित्त द्रव्यों का त्याग 2. वस्त्र आदि अचित्त द्रव्यों को साथ में रखना 3. एकशाटिक उत्तरासंग करना 4. स्थविर-भगवन्तों को देखते ही दोनों हाथ जोड़ना
5. मन को एकाग्र करना श्रावक के बारह व्रत
जैन परम्परा में जहाँ श्रमण के आचार के लिए पंचमहाव्रत, समिति, गुप्ति, भिक्षुप्रतिमा आदि निरूपण हुआ है वहीं श्रावकों के आचार को द्वादशव्रतों के माध्यम से निरूपित किया गया है। द्वादशव्रतों में पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत व चार शिक्षाव्रत समाहित होते हैं। श्रावकाचार के प्रमुख ग्रंथ उपासकदशांग में गुणव्रतों व शिक्षाव्रतों को संयुक्त रूप से शिक्षाव्रत ही कहा गया है। वहाँ पाँच अणुव्रत तथा सात शिक्षाव्रत मिलाकर बारह प्रकार के गृहस्थधर्म का उल्लेख हुआ है- पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवजिस्सामि - (1.12) विपाकसूत्रमें सुबाहु कुमार द्वारा श्रावक के बारहव्रतों को ग्रहण करने का प्रसंग वर्णित है।
भगवतीसूत्र में सोमिल ब्राह्मण द्वारा बारह श्रावक व्रतों को ग्रहण करने का वर्णन मिलता है। तुंगिकानगरी के श्रमणोपासकों की जीवनचर्या के वर्णन में भी शीलव्रत, गुणव्रत, विरमणव्रत, प्रत्याख्यान, पौषध आदि का उल्लेख है। मधुकरमुनि ने व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र में शीलव्रत से तात्पर्य शिक्षाव्रतों से तथा विरमणव्रतों से अणुव्रतों का तात्पर्य ग्रहण किया है। प्रत्याख्यान व पौषध के संबंध में भी ग्रंथ में यत्र-तत्र विचार किया गया है। प्रत्याख्यान के भेदों के विवेचन में देशमूलगुणप्रत्याख्यान से तात्पर्य पाँच अणुव्रतों के प्रत्याख्यान से तथा सातदेशउत्तरगुणप्रत्याख्यान से तात्पर्य तीन गुणव्रत व चार शिक्षाव्रतों के प्रत्याख्यान से है।
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भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन