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उनकी स्थिति के माध्यम के लिए उदासीन कारण के रूप में जैन-दर्शन अधर्मद्रव्य को स्वीकार करता है। यदि लोक में सिर्फ गति तत्त्व को ही स्वीकार किया जाये तो जीव व पुद्गल गति ही करते रहेंगे, उनकी स्थिति कैसे संभव होगी। अतः उनकी संतुलित स्थिति के लिए अधर्म-द्रव्य को प्रतिष्ठापित किया है। लोक व्यवस्था के सन्दर्भ में 'अधर्म' शब्द का प्रयोग पाप के पर्यायवाची के रूप में नहीं होकर गतिशील जीव व पुद्गल के ठहरने के माध्यम के रूप में हुआ है। भगवतीसूत्र में अधर्मास्तिकाय का लक्षण स्थिति स्वीकार किया गया हैठाणलक्खणे णं अहम्मत्थिकाये - (13.4.25)। उत्तराध्ययन में भी अधर्मद्रव्य का लक्षण स्थिति बताया है- अहम्मो ठाण लक्खणो - (28.9)।
__ भगवतीसूत्र में अधर्म-द्रव्य की परिभाषा करते हुए उसे वर्ण, गंध, रस, स्पर्शादि से रहित, शाश्वत, अवस्थित व लोक प्रमाण बताया है। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव व गुण की अपेक्षा से अधर्म-द्रव्य के पाँच भेद किये गये हैं । द्रव्य की दृष्टि से अधर्म-द्रव्य एक द्रव्य रूप है, क्षेत्र की दृष्टि से अधर्म-द्रव्य लोक प्रमाण माना गया है, काल की दृष्टि से अधर्म-द्रव्य कभी नहीं था, ऐसा नहीं; कभी नहीं है, ऐसा नहीं; और कभी नहीं रहेगा, ऐसा भी नहीं; वह नित्य है। भाव की अपेक्षा से अधर्म-द्रव्य वर्ण, गंध, रस व स्पर्श रहित है। गुण की अपेक्षा से स्थिति गुण वाला
भगवतीसूत्र में दी गई अधर्म-द्रव्य की उपर्युक्त परिभाषा से अधर्म-द्रव्य का स्वरूप स्वतः स्पष्ट हो जाता है। धर्म-द्रव्य की तरह वह लोक प्रमाण, रस, वर्ण, गंध, स्पर्श से रहित होने के कारण अरूपी व तीनों कालों में विद्यमान होने के कारण नित्य रूप है। गुण की दृष्टि से स्थिति गुण वाला है। यहाँ यह जानना अनिवार्य है कि स्थूल ठहरना तो स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है, परन्तु सूक्ष्म ठहरना पदार्थ के मुड़ने के समय होता है। चलता-चलता ही पदार्थ यदि मुड़ना चाहे तो उसे मोड़ पर जाकर क्षणभर ठहरना पड़ेगा। यद्यपि रुकना दृष्टिगत नहीं हुआ पर होता अवश्य है। इस सूक्ष्म तथा स्थूल रुकने में जो सहायक तत्त्व है, उसे अधर्म द्रव्य कहते हैं।
पंचास्तिकाया' में आचार्य कुंदकुंद ने अधर्म-द्रव्य का यही स्वरूप बताते हुए कहा है कि जैसा धर्म-द्रव्य है वैसा ही अधर्म-द्रव्य जानो। किन्तु, वह ठहरते हुए जीव और पुद्गलों के ठहरने में पृथ्वी की तरह निमित्त कारण है। पुनः इस संबंध में आचार्य कुंदकुंद ने पंचास्तिकाय20 में प्रकाश डालते हुए कहा है
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भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन