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स्याद्वाद को अनेकान्तवाद भी कहते हैं। इसका कारण यह है कि 'स्याद्वाद' से जिस पदार्थ का कथन होता है वह अनेकान्तात्मक है। अनेकान्तात्मक अर्थ का कथन ही अनेकान्तवाद' है। स्यात्' यह अव्यय अनेकान्त का द्योतक है, इसलिए स्याद्वाद को अनेकान्तवाद कहते हैं। वस्तुतः स्याद्वाद और अनेकान्तवाद दोनों एक ही हैं। स्याद्वाद में स्यात् शब्द की प्रधानता रहती है। अनेकान्तवाद में अनेकान्तधर्म की मुख्यता रहती है। स्यात्' शब्द अनेकान्त का द्योतक है, अनेकान्त' को अभिव्यक्त करने के लिए 'स्यात्' शब्द का प्रयोग किया जाता है।37 सप्तभंगी
भंग शब्द का अर्थ है- प्रकार, विकल्प या भेद। जिससे पदार्थों का विभाग होता है वे सात प्रकार के होने से सप्तभंगी कहे जाते हैं। सप्तभंगीतरंगिणी में सप्त भंगों के समूह को सप्तभंगी कहा है। आचार्य अकलंक ने सप्तभंगी की परिभाषा देते हुए कहा है कि प्रश्न समुत्पन्न होने पर एक वस्तु में अविरोध भाव से जो एक धर्म विषयक विधि और निषेध की कल्पना की जाती है, उसे सप्तभंगी कहते हैं। महेन्द्रमुनि ने इसे और अधिक स्पष्ट करते हुए लिखा है कि विशेषतः अनेकान्त का प्रयोजन प्रत्येक धर्म अपने प्रतिपक्षी धर्म के साथ वस्तु में रहता है यह प्रतिपादित करना ही है। यों तो एक पुद्गल में रूप, रस, गंध, स्पर्श, हल्का, भारी, सत्व, एकत्व आदि अनेक धर्म गिनाये जा सकते हैं। परन्तु 'सत्' असत् का अविनाभावी है और 'एक' अनेक का अविनाभावि है, यह स्थापित करना ही अनेकान्त का मुख्य लक्ष्य है। इसी विशेष हेतु से प्रमाणअविरोधी विधिप्रतिषेध की कल्पना को सप्तभंगी कहते हैं। सात भंग
भंग सात ही क्यों माने गये हैं? इस प्रश्न पर जैनाचार्यों ने गहराई से चिन्तन प्रस्तुत किया है। इस प्रश्न का एक समाधान तो यह प्रस्तुत किया गया है कि वस्तु के एक धर्म सम्बन्धी प्रश्न सात ही प्रकार से हो सकते हैं, इसलिए भंग भी सात प्रकार के होते हैं। शंकाएँ भी सात ही प्रकार की होती हैं, इसलिए जिज्ञासाएँ भी सात प्रकार की होती हैं। किसी भी एक धर्म के विषय में सात ही भंग होने से इसे सप्तभंगी कहते हैं। गणित के नियम के अनुसार भी तीन वस्तुओं के अपुनरुक्त भंग सात ही बन सकते हैं। __सामान्य शब्दों में इसे हम इस प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं कि वस्तु चाहे अनन्तधर्मात्मक होती है, किन्तु उसके प्रत्येक धर्म विषयक प्रश्न सात प्रकार के ही
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भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन