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7. अब मंखली पुत्र गोशालक के शरीर में 16 वर्ष
इस प्रकार कुल 133 वर्ष में सात परिवर्त-परिहार हुए। इनमें से गोशालक के 16 वर्ष घटा दिये जाय, जो भगवान् महावीर के समकालीन थे तो यह स्पष्ट हो ही जाता है कि आजीविक सम्प्रदाय भगवान् महावीर से करीब 117 वर्ष पूर्व विद्यमान था। इस संबंध में डॉ. जे. सी. सिकदर ने अपने शोध प्रबन्ध में विशेष प्रकाश डाला है।1
अनुयायी- गोशालक अपने युग का ख्यातिप्राप्त धर्मनायक था। उसका संघ भगवान् महावीर के संघ से बड़ा था। कहा जाता है कि भगवान् महावीर से कहीं अधिक उसके अनुयायियों की संख्या थी। यही कारण है कि तथागत् बुद्ध ने कहा है कि वह मछलियों की तरह लोगों को अपने जाल में फंसाता है। भगवतीसूत्र में भी कहा गया है कि वह अपने अनुयायियों से घिरा रहता था। आजीवियसपरिवुडे आजीवियसमयेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरति। - (15.1.5)। भगवतीसूत्र में आजीविक सम्प्रदाय के कुछ अनुयायियों का विशेष रूप से उल्लेख भी हुआ है। हालाहला नामक कुम्हारिन आजीविक सिद्धान्त के रहस्य की ज्ञाता थी। वह उसके प्रेमानुराग में इस तरह रंग गई थी कि उसे आजीविक का सिद्धान्त ही सच्चा व परमार्थ लगता था। शेष सभी अनर्थ । छ: दिशाचर, जिन्होंने अष्टांग महानिमित्त, नवें गीतमार्ग व दसवें नृत्यमार्ग को अपने-अपने मतिदर्शनों में उद्धृत कर लिया था, मंखलीपुत्र गोशालक के पास आये और दीक्षित हुए। उनके नाम इस प्रकार
1. शोण, 2. कनन्द, 3. कर्णिकार, 4. अच्छिद्र, 5. अग्निवैश्यायन, 6. गौतम (गोमायु) पुत्र अर्जुन
इसके अतिरिक्त अयंपुल नामक आजीविकोपासक तथा अन्य आजीविक स्थविरों का भी उल्लेख मिलता है। ग्रंथ में अन्यत्र 12 आजीविकोपासकों के नाम का भी उल्लेख हुआ है
1. ताल, 2. तालप्रलम्ब, 3. उद्बिध, 4. संविध, 5. अवविध, 6. उदय, 7. नामोदय, 8. नर्मोदय, 9. अनुपालक, 10. शंखपालक, 11. अयम्बुल, 12. कातरक आजीविक सिद्धान्त
भगवतीसूत्र में आजीविक सम्प्रदाय के आचार व्यवहार एवं अनेक सिद्धान्तों का विवेचन हुआ है। इनका संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है।
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भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन